पृथ्वी पर सभी जीवों के लिए आहार का अनन्य महत्व है। आहार के बिना जीवन ही संभव नहीं है। मुझे तो लगता है कि जीने के लिए खाना जरूरी है पर कुछ लोग तो खाने के लिए ही जीते हैं ऐसा दिखाई देता है। खाने के लिए जीवन जीने वालों को उसके दुष्परिणाम बाद में दिखाई देते हैं। आयुर्वेद के हिसाब से तो खाना मतलब आहार भी अगर हम योग्य मात्रा में लेते हैं तो वह औषधि की तरह शरीर और मन के ऊपर काम करता है। हमारे जीवन की शुरुआत ही रोने से होती है और फिर रोना बंद करने के लिए खाना खाने से मतलब दूध पीने से शुरुआत होती है, ऐसा हम कह सकते हैं। तो इस तरह से आहार और मनुष्य जीवन का एक अटूट संबंध हैं।
आयुर्वेद शास्त्र मे बालकों के उम्र के अनुसार और आहार के तीन भाग किए गए हैं।
१) क्षीरप २) क्षीरान्नाद ३) अन्नाद
१) क्षीरप
‘क्षीरप‘ अवस्था में बालक का आहार सिर्फ दूध होता है। जन्म के बाद पहले 6 महीने बालक को मां का दूध पीना ही आहार के स्वरूप में सर्वोत्तम माना गया है। ‘क्षीरप‘ यह अवस्था पहले 6 महीने में बताई गई है। उसके बाद ‘क्षीरान्नाद‘ अवस्था शुरू होती है। इसमें दूध के साथ दूसरे अन्य पदार्थ थोड़े प्रमाण में दिए जाते हैं पर आहार का मुख्य भाग तो दूध ही होता है। इस अवस्था में भी साधारण 2 वर्षों की आयु तक ‘क्षीरान्नाद‘ अवस्था होती है। उसके बाद ‘अन्नाद‘ अवस्था में मुख्य आहार्य पदार्थ अन्न के स्वरूप में दिया जाता है। बच्चे को ऊपर का खाना कब और कैसे खिलाना चाहिए इसका वर्णन आयुर्वेद ग्रंथों में अच्छी तरह किया है –
‘‘षष्ठेऽन्नप्राशनं मासि क्रमात्तच्च प्रयोजयेत् ।
चिराग्निषेवमाणोऽन्नं बालो नातुर्यमश्नुते ।।
भजेद्यथा यथाचान्नं स्तन्यं त्याज्यं तथातथा ।। ‘‘
…(अष्टांग संग्रह उत्तर तंत्र)
२) क्षीरान्नाद
‘क्षीरान्नाद‘ अवस्था में अन्नप्राशन संस्कार शुरू करना चाहिए। बालक जब 6 महीने की आयु का होता है तब हमें अच्छा दिन देखकर सूजी की पतली खीर चटानी चाहिए। इसके लिए हम अगर चांदी का चम्मच और कटोरी इस्तेमाल करें तो और भी बेहतर होगा।
मां के दूध के अलावा ऊपर का खाना बच्चे को शुरू करते हैं तो उसकी मात्रा धीरे-धीरे बढ़ानी चाहिए। जैसे-जैसे खाने की मात्रा बढ़ाते जाएंगे वैसे ही दूध की मात्रा धीरे-धीरे कम करते जाएंगे। अन्न का प्रमाण जितनी धीरे-धीरे हम बढ़ाते जाएंगे उतनी ही बालक की प्रकृति खराब होने की संभावना कम होती है।
6 महीने से 1 साल की आयु तक के बालकों को खीर, ताजे फलों के रस, सब्जियों का सूप , चावल-मूंग का पानी या चावल उबलते वक्त उसके ऊपर का पानी ऐसे पदार्थ जो पचन के लिए हल्के हैं यह 10-15 दिनों के अंतर में देने की शुरुआत करनी चाहिए। उदाहरण के तौर पर समझ लो पहले 10 – 15 दिन अगर सिर्फ खीर दी है, तो उसके बाद 10-15 दिन सिर्फ फलों के रस देने चाहिए, उसके बाद 10-15 दिनों तक सब्जियों के सूप देने शुरू करने चाहिए। शुरुआत में दिन में से सिर्फ एक बार ऊपर का खाना बालक को देना चाहिए। बालक को उस खाने की आदत होने के बाद, दिन में दो बार भी हम यह खाना दे सकते हैं। बालक को जो अन्न पदार्थ हम खाने के लिए देते हैं वह पतले होने चाहिए, उसमें कोई छोटे टुकड़े या दाना ना रहे और यह खाना ज्यादा गर्म या फिर बहुत ज्यादा ठंडा भी ना रहे। अगर कोई पदार्थ बालक को नहीं अच्छा लगा ऐसा समझ में आता है तो उसे जबरदस्ती वह पदार्थ ना खिलाएं। कुछ दिनों के बाद फिर से एक बार यह नापसंद अन्न पदार्थ देने का प्रयास करें। बालक की जिव्हा यह सब पदार्थ पहली बार ही स्वाद ले रही होती हैं इसलिए नए पदार्थ हो या फिर उनका स्वाद नापसंद हो सकता है। इसी के लिए हमें ऊपर के पदार्थों का स्वाद को अच्छा लगे, पसंद आए ऐसा ही अन्न खिलाना चाहिए। बच्चे के लिए कौनसा भी नया पदार्थ शुरुआत में दे रहे होते हो तब नमक और शक्कर थोड़ी कम ही रखो। आजकल तीसरे – चौथे महीने में ही बाजार में बालक के लिए रेडीमेड पैक्ड फूड मिलता है। यह बाजार का खाना बच्चे के पचन के लिए आसान नहीं होता है। पेट साफ नहीं होना, गैसेस होना यह बच्चों को बाहर का पैकड फूड खाने के बाद हो सकता हैं। इसलिए यह बाहर का खाना ना देना ही बेहतर होगा।
खीरः चावल, खसखस, नाचनी, सूजी इन सब की खीर बच्चों के लिए हितकर है। सामान्यतः आधी या एक चौथाई छोटी कटोरी खीर बच्चों को देनी चाहिए।
फलों के रसः अनार, सेब, संतरा, मोसंबी, अंगूर, अमरुद इन फलों का ताजा रस बच्चों को दे सकते है। फल हमेशा ताजे और मीठे होने चाहिए। खट्टे फल और दूध एक साथ ‘मिल्क-शेक‘ बनाकर कभी भी ना दे क्योंकि आयुर्वेद के अनुसार यह ‘विरुद्ध-आहार‘ कहा गया है और इस प्रकार का आहार खाया गया तो सेहत के लिए हानिकारक होता है। इससे त्वचा रोग जैसी बीमारियां हो सकती है। ‘मिल्क-शेक‘ पचन के लिए भी भारी होता है। सेब जैसे फल भी पचन के लिये भारी होते है, इसके लिए वह कुकर में पका के लेने चाहिए और फिर उसका रस निकालकर छलनी में से छानना चाहिए। यह 1 फल का रस सिर्फ दो- तीन चम्मच ही एक बार में देना चाहिए। आजकल बच्चों को केले ज्यादा मात्रा में खिलाए जाते हैं पर याद रखें बारिश के दिनों में बच्चों को कभी भी ‘केला‘ ना दे। इससे उन्हें सर्दी जुकाम हो सकता हैं।
सब्जियों का सूपः कद्दू ,पालक ,गाजर ,भोपला इनमें से एक या दो सब्जियां पानी में उबाल कर ले, फिर छलनी में छानकर उसमें स्वाद के लिए नमक और शक्कर डालिए। थोड़ा सा जीरा और अजवाइन उसमें डाले और घर में बनाया हुआ ताजा घी १ चम्मच डाले। इस तरह बनाया हुआ सब्जियों का सूप आधी कटोरी बच्चों को देना चाहिए।
चावल-मूंग का पानीः चावल और मूंग एक साथ मिलाकर उबाले और उसमें चावल के प्रमाण में आठ बार अधिक पानी डालें ।उसमें थोडा जीरा और घी डालें। नमक और शक्कर स्वादानुसार डाले। आधी कटोरी यह उबला हुआ पानी दीजिए। इसमें आप चाहें तो कोई सब्जी भी डाल सकते हैं उबलते वक्त।
बच्चा जब 1 साल का होता है तो आहार में लिक्विड मतलब द्रव अंश कम करना चहिए। चावल और मूंग का पानी मतलब पेज को थोड़ा सा और ज्यादा गाढ़ा बनाकर खिलाएं। पानी कम और चावल और मूंग ज्यादा ऐसे प्रमाण में बना कर उसकी खिचड़ी या फिर मिक्सर में से निकाल कर दे सकते हैं। सिर्फ फलों के रस के अलावा उबले हुए सेब, अमरूद, पपई के अंदर का पका हुआ जो फल है- ‘फ्रूट पल्प‘ खिला सकते हैं।
गर्मी के दिनों में एक चौथाई केला स्मैश करके दे सकते हैं। केले की वजह से सर्दी हो सकती है इसलिए उस में खिलाते वक्त थोड़ा मधु डालना चाहिए। 1 साल के बाद बालक को थोड़ी रोटी भी खिलानी चाहिए। मगर रोटी दाल में बारीक टुकड़े की हुई या फिर मिक्सर में से निकाली हुई होनी चाहिए। रोटी, दाल उसमें ही थोड़ा गाजर, बीट, आलू , पालक, मेथी, भिंडी, कद्दू वगैरह सब्जियां मिला कर दे सकते हैं। सब्जियां देते वक्त उसमें नारियल और स्वाद अनुसार नमक और शक्कर डालनी चाहिए। बच्चों की बढ़ती उम्र के लिए यह दाल एक प्रोटीन का उत्तम स्त्रोत होती है। बच्चों की शारीरिक और बौद्धि क क्षमता बढ़ाने के लिए हमें आहार में ऐसी चीजें खिलानी चाहिए। इससे बच्चों का दिमाग भी अच्छी तरह से विकसित होता है और बुद्धि भी विकसित होती है। आहार में मीठे रस के पदार्थ उसमें भी ‘घी- शक्कर‘,‘मक्खन- शक्कर‘ ऐसे पदार्थ दे सकते हैं। ना की चॉकलेट, केक जैसे पदार्थ जो पचन के लिए भारी होते हैं। कड़वे और तीखे पदार्थ बच्चों को जितनी ज्यादा दिनों के बाद दे सकते हैं उतना बेहतर है। बच्चों का ‘पचन-संस्थान‘ अत्यंत संवेदनशील होता है। उनसे भारी पदार्थ जैसे कि मटर, मांसाहार, सब प्रकार की कच्ची दाल, केक, बिस्किट जैसे मैदे के पदार्थ, अंडे, पनीर, चीज यह ना देना ही बेहतर है। अम्ल रस युक्त फल जैसे खट्टा अंगूर, खट्टा संतरा ऐसे फल बच्चों को ना दें। 2 साल की उम्र तक तले हुए और बाहर के अन्य पदार्थ भी बच्चों को ना दें। दूध और फल एक साथ ना दे। इससे अनेक प्रकार की एलर्जी, त्वचा के ऊपर फुंसियां-फोड़ी जेसा हो सकता है। सर्दी- खांसी अगर हुई हो तो सीताफल, केला, स्ट्रॉबेरी ऐसे फल कभी भी बच्चों को ना दे।
३) अन्नाद
2 बरस के बाद बच्चों की ‘अन्नाद‘ अवस्था शुरू होती है। तब बालकों को मुख्य ‘‘आहार‘‘ मतलब ‘‘खाना‘‘ खिलाना चाहिए। 2 बरस से बालक को दूध के दांत आने शुरु हो जाते हैं। इससे बालक को चबाना, निगलना ये क्रियाएं आती हैं। इसलिए अब आहार का स्वरूप बदला जा सकता है। बालक अच्छी तरह से खाना खाने लगते हैं, तो उसे मां का दूध भी देने की जरूरत नहीं होती। लेकिन ऊपर का दूध, गाय का दूध या फिर भैंस का दूध देना चाहिए। बालकों की 16 वर्ष की आयु तक हड्डियां बढ़ती है। इसके लिए उन्हें कैल्शियम की जरूरत होती हैं और दूध देने से कैल्शियम की मात्रा शरीर में बनी रहती है और उनकी हड्डियों की ताकत भी बढ़ती है। 8 साल की आयु तक तो दिन में दो बार एक कप दूध पिलाना सेहत के लिए अच्छा है।
2 साल बाद की आयु के बच्चों को दिन में चावल, दाल, सब्जी, रोटी ऐसा सब पूरा आहार खिलाना चाहिए। पूरा खाना खाने की आदत बचपन में ही बच्चों को लगानी चाहिए। हर प्रकार की सब्जियां, फल, दाल ऐसे पदार्थ खाना सिखाना चाहिए। बच्चों के लिए दोपहर में घर में बनाए हुए घी और मूंग के लड्डू, राजगिरा के लड्डू, मुनक्का, अंजीर, खजूर, बदाम इसका मिश्रण, उपमा जैसे पदार्थ देने चाहिए। उबला हुआ आलू, उसमें थोड़ा सा नमक डाल कर देना चाहिए। घर में बनाया हुआ ताजा मक्खन एक चम्मच देना चाहिए। रात के समय चावल-दाल की खिचड़ी, सिर्फ चावल, मिक्स सब्जियों का पराठा, रोटी ऐसे किस्म का आहार देना चाहिए। बाजार में आजकल झटपट तैयार होने वाली पैक्ड फूड, फास्ट फूड की पैकेट्स मिलते हैं, लेकिन यह सेहत के लिए अच्छे नहीं होते। उसमें पोषण मूल्य कुछ नहीं होते हैं और वह पचन के लिए भी भारी होते हैं। इसलिए ऐसे पदार्थ ना देना ही बेहतर हैं। इडली, डोसा जैसे पदार्थ भी बच्चों को ज्यादा मात्रा में देना नही चाहिए क्योंकि ये पदार्थ भी पाचन के लिए भारी होते हैं। इस तरह बच्चों का विकास अच्छी तरह हो, उनका शारीरिक, बौद्धिक और मानसिक विकास अच्छी तरह हो और उनका आरोग्य बना रहे, उनकी ताकत बढ़े और उनके नाजुक पचन संस्थान के ऊपर कोई आंच ना आए इस प्रकार का ताजा, गरम आहार (खाना) हमें देना चाहिए।