बालक को पहले ६ महिने सिर्फ स्तन्यपान करना चाहिए। छह महीने के बाद ऊपर का अन्न शूरू कर सकते है लेकिन सवा, डेढ़ वर्ष तक स्तन्यपान कराते रहना चाहिए। आयुर्वेदने स्तनपान कराने का महत्व बताते हुए ऐसा वर्णन कीया हे की अगर किसी कारण वश बालक की माता स्तनपान ना करा सके, तो उसी के स्वभाव और उम्र की दूसरी निरोगी स्त्री को स्तनपान कराने की व्यवस्था करवानी चाहिए। उस स्त्री को ‘धात्री‘ कहा है। अगर मां या धात्री दोनों का भी दूध बच्चे को ना मिल सके, तो बकरी या गाय का दूध पिला सकते हैं। बालक के संपूर्ण…
Dr. Prajkta Sachin Ganeshwadi
”किसी भी षिषु के लिए मां के स्तन्य दुग्ध का पान, अमृतपान के समान ही है। षिषु के लिए यह स्तनपान स्वास्थ्य रक्षक एवं जीवन वर्धक है।“ ‘‘मातुरेव पिबेत् स्तन्यम्‘‘ बालक के लिए मां का दूध ही सर्वोत्तम आहार होता है। मां द्वारा अपने शिशु को अपने स्तनों से आने वाला प्राकृतिक दूध पिलाने की क्रिया को स्तनपान कहते हैं। आयुर्वेद में मां के दूध को ‘‘स्तन्य‘‘ कहा गया है और यह मां का दूध पीने की प्रक्रिया को ‘‘स्तन्यपान‘‘ कहा गया है। स्तनपान शिशु के लिए संरक्षण और संवर्धन का काम करता है। नवजात शिशु में रोग प्रतिरोधात्मक शक्ति…
पृथ्वी पर सभी जीवों के लिए आहार का अनन्य महत्व है। आहार के बिना जीवन ही संभव नहीं है। मुझे तो लगता है कि जीने के लिए खाना जरूरी है पर कुछ लोग तो खाने के लिए ही जीते हैं ऐसा दिखाई देता है। खाने के लिए जीवन जीने वालों को उसके दुष्परिणाम बाद में दिखाई देते हैं। आयुर्वेद के हिसाब से तो खाना मतलब आहार भी अगर हम योग्य मात्रा में लेते हैं तो वह औषधि की तरह शरीर और मन के ऊपर काम करता है। हमारे जीवन की शुरुआत ही रोने से होती है और फिर रोना बंद…
पिछले 2 अंकोंमें नवजात बालककी रोगप्रतिकारक क्षमता सुवर्णप्राशन के जरिए हम कैसे बढ़ा सकते हैं इसके बारे में पढ़ा, और नवजात शिशु का मसाज याने अभ्यंग कैसे कर सकते हैं इस के बारे में भी पढ़ा। इस अंक में जानकारी लेंगे कि हम नवजात शिशु को स्नान कैसे कराएं। शिशु का स्नान और उबटनः जन्म के पश्चात पांच-छह घंटों के बाद नवजात शिशु को अवश्य स्नान कराना चाहिए। स्नान के बारे में जब हम सोचते हैं तो सर्व प्रथम हमारे दिलो-दिमाग में यही सवाल आता है कि हम स्नान के लिए कैसा पानी इस्तेमाल करें? ऋतु के अनुसार गुनगुना…
शास्त्र शुद्ध पद्धती के अनुसार मसाज करने से शिशु को बहुत फायदा हो जाता है। पर मसाज का मतलब सिर्फ तेल लगाना ऐसा नहीं होता। शिशु से एकरूप होकर उसे स्पर्श के माध्यम से संवाद करना ही सही मायने में मसाज होता है। नियमित रूप से मसाज करने से शरीर में रक्त का संचलन, श्वसन संस्था, पचनसंस्था अच्छी तरह से कार्यक्षम हो जाते है। मसाज की वजह से शिशू में रोग प्रतिकारक शक्ती यानी की इम्मूनिटी बढाने वाली पेशियों की संख्या बढ़ जाती है और शरीर से स्ट्रेस का लेव्हल कम हो जाता है। मसाज करने से शिशू को अच्छी…
‘‘पहले मेरी बेटी प्रत्येक महिने मे एक बार तो जरूर बीमार हो जाती थी। उसे बच्चों के डॉक्टर के पास ले जाना पड़ता था, ऐडमिट करवाना पड़ता था। अब लगभग बीमार पड़ना बंद हो गया है।” “हमारा सुहास पहले बहुत कम बात करता था, अब स्पष्ट रूप से और बहुत सारी बातें करता है।‘‘ “पिछले कुछ दिनों में मेरे बच्चे की भूख और ऊंचाई बढ़ी है।‘‘ “अब अध्ययन करने के लिए मेरे बेटे प्रतीक के पीछे लगने की जरूरत नहीं पडती। अब उसके अभ्यास की गति बढ़ गई है और जो पढ़ाया गया है वह उसे अच्छी तरह याद भी…