आयुर्वेद में क्षणभंगुरवाद सिद्धांत के अनुसार प्रत्येक वस्तु परिवर्तनशील है चाहे वह निर्जीव हो या सजीव अर्थात् एक क्षण जो वह है दूसरे क्षण वह वैसा नहीं रहता है, परिवर्तित होता रहता है। यदि हम मनुष्यों में परिवर्तन की बात करते हैं तो हम सभी जानते हैं कि मानव जीवन मुख्य रूप से तीन चरणों में विभाजित है: बाल्यावस्था, युवावस्था और वृद्धावस्था। बाल्यावस्था से युवावस्था में परिवर्तन सभी मनुष्यों के लिए बहुत महत्वपूर्ण है चाहे वो लड़का हो या लड़की, लेकिन लड़कियों में यह अधिक महत्वपूर्ण है क्योंकि जब वह बाल्यावस्था से किशोरावस्था में प्रवेश करती है तब एक लड़की के शरीर में कई परिवर्तन होते हैं । एक परिवर्तन जो अत्यंत महत्वपूर्ण है, वह है मासिक धर्म का प्रारम्भ। मासिक धर्म एक प्राकृत शारीरिक परिवर्तन है, जिसमें हर माह (21-35 दिन के अंतराल से) मे 3 से 7 दिनों के लिए योनि से रक्तस्राव होता है। यह इस बात का परिचायक है कि लड़की प्रजनन योग्य होने के प्रथम चरण में प्रवेश कर गई है। जब मासिक धर्म प्रारम्भ होता है, तो पहले मासिक धर्म को प्रथम रजोदर्शन (मेनार्च) कहा जाता है, जो किशोरियों में लगभग 11-15 वर्ष की आयु से प्रारम्भ होता है। यह समय न केवल मासिक धर्म की शुरूआत का होता है, बल्कि विभिन्न विकासात्मक और मानसिक परिवर्तन का भी समय होता है जैसे कि विभिन्न द्वितीयक लैंगिक लक्षणो का प्रादुर्भाव-स्तनों का विकास, प्रजनन प्रणाली का विकास, मनोवैज्ञानिक परिवर्तन आदि । हमारे देश के ग्रामों और शहरो में मासिक धर्म के प्रभाव को अलग-अलग तरह से देखा जा सकता है। ग्रामीण क्षेत्रों मे मासिक धर्म से संबंधित विभिन्न अंधविश्वासो और मिथकों का जुड़ाव देखा जाता है, जो किशोरियों के सामाजिक, सांस्कृतिक, भावनात्मक जीवन, जीवनशैली तथा स्वास्थ्य को प्रभावित करता है। हमारे प्राचीन धर्मग्रंथों में किशोरियों में मासिक धर्म के आरंभ के बारे में विभिन्न प्रकार के विवरण दिए गए हैं, उदाहरण के लिए – वेदों में यह इंद्र के द्वारा व्रत के वध से जुड़ा हुआ है, और यह कहा जाता है कि ब्रह्महत्या का यह अपराध हर महीने मासिक धर्म के रूप मे प्रकट होता है क्योकि महिलाएं स्वयं को इंद्र के अपराध का हिस्सा मानती थीं।’ किशोरियों को मासिक धर्म की अवधि के दौरान विभिन्न प्रतिबंधों जैसे कि मंदिरों या पूजा स्थलों में प्रवेश नहीं करना, पवित्र पुस्तकों और देवताओं की मूर्तियाँ को न छूना, ग्रामीण क्षेत्रों मे विशेष रूप से उसे रसोई में प्रवेश करने की अनुमति नहीं होती, आचार आदि जैसे खट्टे खाद्य पदार्थों को स्पर्श करने की अनुमति नहीं होती है । कुछ ग्रामीण क्षेत्रों में किशोरियों को मासिक धर्म के दिनों मे घर में अकेले अलग कमरे में रखा जाता है और अपनी दैनिक गतिविधियों को करने की अनुमति नहीं होती है। उसे मासिक धर्म की अवधि मे अशुद्ध माना जाता है क्योकि इस अवधि के दौरान उनके शरीर से कुछ विषाक्त पदार्थों का स्राव होता है, ऐसी मान्यता है। कुछ संस्कृति में, किशोरियों को बुरी आत्माओं द्वारा इस्तेमाल किए जाने से रोकने के लिए मासिक धर्म के दौरान इस्तेमाल किए गए अपने कपड़ों को दफनाना पड़ता है, सूरीनाम में मासिक धर्म रक्त खतरनाक माना जाता है और एक पुरुषवादी व्यक्ति काले जादू का उपयोग करके एक मासिक धर्म वाली लड़की को नुकसान पहुंचा सकता है।’ भारत में भी इस तरह की मान्यताओं का अभी भी कुछ हिस्सों मे प्रचलन है ,जो विशेष रूप से ग्रामीण क्षेत्रों में मासिक धर्म के विषय में एक लड़की के मन पर नकारात्मक प्रभाव डालते हैं।
मासिक धर्म के दौरान किशोरियों पर देखे जाने वाला मुख्य प्रभाव यह है की उन्हें इस अवधि के दिनों मे विद्यालय जाना छोड़ना पड़ता है जो उनकी पढ़ाई के साथ-साथ मानसिक स्थिति को भी प्रभावित करता है यह कि वह अन्य किशोरियों और लड़कों से पढ़ाई मे पीछे रह जाएगी। कुछ किशोरियों को, विशेष रूप से ग्रामीण क्षेत्रों में मासिक धर्म की शुरुआत के बाद अपनी पढ़ाई छोड़नी पड़ती है जो उन्हे हीन भावना की ओर ले जाती है या कभी-कभी आगे के अध्ययन के लिए अनुमति नहीं दी जाती है और मानसिक रूप से शादी के लिए तैयार किया जाता है। लड़कियां लज्जावश सार्वजनिक स्थलों मे मासिक धर्म के दौरान पैड या कपडा न बदल पाने के कारण संक्रमण की शिकार हो जाती हैं अथवा विभिन्न प्रकार के रोगों से ग्रसित हो जाती हैं। इसके साथ ही कपडा न बदल पाने के कारण उनके कपडे मासिक रक्त से सन जाते हैं जिससे वे और लज्जित होती हैं एवं उन दिनों मे सार्वजनिक स्थलों पर जाने से घबराती हैं। शहरो मे मासिक धर्म से जुड़ी समस्या अनियमित मासिक धर्म है अर्थात मासिक धर्म के अंतराल में वृद्धि या कमी का होना। यह शरीर मे हाइपोथैलेमो – पिट्यूटरी – डिम्बग्रंथि प्रणाली (हॉर्मोन्स) की अपर्याप्त उत्तेजना के फलस्वरूप उत्पन्न होती है जो प्रजनन आयु में महिलाओं में मासिक धर्म चक्र को नियंत्रित करती है। यदि आहार एवं जीवनशैली सम्यक् रहे तो यह समस्या स्वयं ही 2-3 वर्ष पश्चात् ठीक हो जाती है । एक अन्य समस्या पैड के उचित निस्तारण और स्वच्छता की है जो विशेष रूप से ग्रामीण भारत में मासिक धर्म के दौरान किशोरियों के लिए उपलब्ध नहीं हैं, जो विभिन्न प्रकार के योनि संक्रमणों के होने के लिए उत्तरदायी हैं जैसे श्वेतप्रदर , योनि और मूत्रमार्ग क्षेत्र में खुजली, योनि मे जलन आदि । इस समस्या का कारण पुराने, अस्वच्छ और एक ही कपड़े का बार-बार उपयोग भी है जो विशेष रूप से ग्रामीण क्षेत्रों में जागरूकता के अभाव के कारण देखा जाता है, जहां सैनिटरी पैड उपलब्ध नहीं हैं या वे अपनी सामाजिक आर्थिक स्थिति अच्छी न होने के कारण उसे खरीद नहीं सकते हैं। मासिक धर्म से जुड़ी अन्य समस्या विभिन्न प्रकार के सैनिटरी पैड के उपयोग से देखी जाने वाली एलर्जी की प्रतिक्रिया है, यह स्थिति मुख्य रूप से शहरी क्षेत्रों में देखी जाती है जहां विभिन्न विज्ञापनो द्वारा विभिन्न प्रकार के पैड के उपयोग को बढ़ावा दिया जाता है। मासिक धर्म के आरंभ से जुड़ी अन्य प्रमुख समस्या मासिक धर्म से जुड़ी पीड़ा है जो किशोरी के दिन-प्रतिदिन की गतिविधियों को प्रभावित करती हैं और जिसके लिए किशोरियाँ दर्द निवारक दवाएं लेती हैं जिनके कई दुष्प्रभाव होते हैं । इसके अलावा प्री मेन्स्ट्रुअल सिंड्रोम नामक एक बीमारी है जो किशोरियों के स्वास्थ्य को प्रभावित करता है जिसमें मासिक धर्म शुरू होने से पहले किशोरियों को पेट की निचले भाग में दर्द, सिरदर्द, चक्कर आना, मनोदषा में परिवर्तन, उल्टी, दस्त, भूख न लगना, नींद न आना, कब्ज आदि जैसी कुछ शिकायतों का सामना करना पड़ता है। यह विभिन्न हार्मोनल परिवर्तनों के कारण होता है जो मासिक धर्म की शुरुआत से पहले नहीं होता, लेकिन मासिक धर्म के साथ प्रारम्भ होता है। किसी भी डॉक्टर या स्त्री रोग विशेषज्ञ से परामर्श किए बिना केवल विज्ञापन देखकर योनि स्वच्छता बनाए रखने के लिए विभिन्न प्रकार के एन्टिसेप्टिक प्रक्षालको आदि का उपयोग किशोरियों द्वारा किया जाता है, लेकिन इसका उपयोग महिला की योनि में मौजूद सामान्य योनि जैविक तंत्र को असंतुलित कर विभिन्न प्रकार के संक्रमण का कारण बनता है। मासिक धर्म के दौरान योनि की स्वच्छता बनाए रखने के लिए, कुछ महिलाएं विभिन्न प्रकार के एन्टिसेप्टिक द्रव्यों का उपयोग योनि प्रक्षालन हेतु करती हैं जो योनि के सामान्य जैविक तंत्र को असंतुलित कर संक्रमण का कारण बनता है और यह समस्या विशेष रूप से शहरी क्षेत्रों में देखी जाती है।
इसलिए, अब सवाल यह है कि हमें लड़कियों की किशोर अवस्था में मासिक धर्म के प्रभावों को प्राकृत अवस्था मे रखने के लिए या सामान्य करने के लिए क्या करना चाहिए, विशेष रूप से हमारे देश के ग्रामीण क्षेत्रों में जहाँ अभी भी किशोरियों पर कई प्रकार के प्रतिबंध लगाए जाते हैं। सबसे पहले किशोरियों को मासिक धर्म की प्रक्रिया के बारे में शिक्षित करना आवश्यक है कि यह एक प्राकृतिक शारीरिक घटना है और यह उन्हें लड़कों से निम्न नहीं बनाता है बल्कि किशोरियों को अद्वितीय बनाता है कि इस मासिक धर्म के साथ भी वह सभी शारीरिक और मानसिक तनावों का सामना कर सकती है एवं जीवन मे सफलता प्राप्त कर सकती हैं। उन्हें ऐसी महिलाओं या किशोरियाँ जो समाज,देश एवं विश्व में महान कार्यों के लिए जानी जाती हैं, के उदाहरणों से प्रोत्साहित करना चाहिए । यह शिक्षा उनके परिवार में माँ के साथ एवं विद्यालय स्तर पर शुरू होनी चाहिए।
आयुर्वेद में हम क्या कर सकते हैं?
आयुर्वेद में इसे “रजस्वला परिचर्या” के नाम से जाना जाता है जो मासिक धर्म के दौरान किशोरियों या महिलाओं को एक आदर्श आहार और जीवन शैली के बारे मे बताता है । इसे न केवल मासिक धर्म के लिए बल्कि विभिन्न प्रकार के स्त्री रोग रोकने वाली एक दीर्घकालिक प्रभाव वाली परिचर्या के रूप में जानना चाहिए । आधुनिक व्यस्त जीवन शैली में गर्भाशय फाइब्रॉएड , एडेनोमायोसिस, अनियमित मासिक धर्म आदि रोग एवं भावनात्मक रूप से परेशान करने वाली बीमारी “बांझपन” को यह परिचर्या रोकने मे सक्षम है। यदि किशोरियाँ आयुर्वेद में उल्लिखित रजस्वला परिचर्या का पालन करती हैं, तो यह कष्टार्तव, प्री मेन्स्ट्रुअल सिंड्रोम जैसी विभिन्न समस्याओं को रोकने में मदद करता है। जैसे ही मासिक धर्म शुरू होता है उसे स्वच्छता का ध्यान रखना चाहिए, दिन के समय में नहीं सोना चाहिए, काजल का प्रयोग, रोना, शरीर की मालिश, नाखूनों को काटना, अत्यधिक हंसना, अत्यधिक बात करना, बाल सवांरना, तेज हवा में बैठना, अत्यधिक व्यायाम आदि को करने से बचना चाहिए। उसे पृथ्वी पर फैले दर्भ (एक पौधे) से बने बिस्तर पर सोना चाहिए, घी, शालि चावल, दूध, यव (जौ) से बने खाद्य पदार्थों को सीधे हथेली पर या मिट्टी या पत्तियों से बने या बिना टूटे हुये बर्तनों में खाना चाहिए, उसे मासिक की अवधि के दौरान कम मात्रा में भोजन करना चाहिए, तीखा, मसालेदार खाना नहीं लेना चाहिए और भोजन में नमक का अधिक उपयोग नहीं करना चाहिए, उसे आभूषण नहीं पहनने चाहिए, नाक के माध्यम से किसी भी औषध का उपयोग नहीं करना चाहिए। किशोरियों को हमेशा मासिक अवधि के दौरान अच्छी और शुभ चीजों पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए। हालांकि आजकल व्यावहारिक आधार पर इन सभी परिचर्या का पालन करना संभव नहीं है, लेकिन फिर भी कुछ आहार और जीवन शैली में परिवर्तन करके हम एक लड़की के शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य और सामाजिक जीवन पर मासिक धर्म के कारण होने वाले विभिन्न दुष्प्रभावों को रोक सकते हैं। इस परिचर्या का यथासंभव पालन किया जा सकता है। इस दौरान ब्रह्मचर्य(शारीरिक एवं मानसिक संयम) का पालन किया जाना चाहिए क्योंकि मासिक धर्म के दौरान योनिमार्ग से रक्तस्राव होता है, जिससे यह समय संभोग के लिए उपयुक्त नहीं होता है और ऐसा करना स्त्रीरोग संबंधी विकार एंडोमेट्रियोसिस का कारण बनता है। उसे दर्भ पर सोने की सलाह दी जाती है, क्योंकि यदि रक्तस्राव अत्यधिक होता है तो यह उन कपड़ों को खून से सनने से बचाता है जिस पर वह सोती है। इसके अतिरिक्त दर्भ को हिंदुओं, जैनों, बौद्धों द्वारा पवित्र पौधे माना जाता है एवं मासिक धर्म के दौरान अत्यधिक रक्तस्राव में उपयोग किया जाता है। वर्तमान युग में, मासिक धर्म के लिए बहुत सी चीजें जैसे सैनिटरी पैड आदि की अच्छी शोषक क्षमता होने के कारण लड़कियां बिना किसी चिंता के बिस्तर पर आराम से सो सकती है। इस अवधि के दौरान भोजन हल्का और आसानी से पचने योग्य होना चाहिए जिसमें घी, दूध, जौ आदि जैसी लघु और शक्ति बढ़ाने वाले द्रव्य लेने चाहिए ताकि रक्तस्राव के कारण होने वाली कमजोरी और थकान दूर हो सके। मासिक धर्म के दौरान रक्तस्राव के कारण, एक महिला स्वच्छ महसूस नहीं करती है, इस कारण से खुद को सजाने जैसी कुछ गतिविधियाँ निषिद्ध हैं। अन्य गतिविधियाँ जैसे अत्यधिक हँसना, अत्यधिक बात करना, आदि निषिद्ध हैं क्योंकि योनि से रक्त स्रवित होता है जिससे महिला को परिश्रम महसूस होता है एवं इन उपरोक्त गतिविधियों को करने से थकान बढती है और इन गतिविधियों से मासिक धर्म के दौरान रक्त प्रवाह भी प्रभावित होता है।
मासिक धर्म की स्वच्छता बनाए रखने के लिए आधुनिक चिकित्साशास्त्र के स्त्री रोग विशेषज्ञों द्वारा बताए गए अन्य तरीके इस प्रकार है – पैड बार-बार बदलना (हर 4-6 घंटे मे), सूती सैनिटरी पैड का उपयोग करने का प्रयास करें, यदि रियूजेबल पैड का पुनः उपयोग कर रहे हैं तो इसे ठीक से साफ करें, योनि क्षेत्र को साफ रखें, आरामदायक और साफ अन्तर्वस्त्र (अंडरगारमेंट्स) पहनें। इस्तेमाल किए गए सैनिटरी पैड का ठीक से निस्तारण करें। आजकल मासिक धर्म के लिए विभिन्न उत्पाद उपलब्ध हैं जैसे पैड (सैनिटरी नैपकिन), टैम्पोन, मासिक धर्म कप, उनका उपयोग करें।
अतः निष्कर्ष रूप में यह कहा जा सकता है कि मासिक धर्म एक प्राकृत शारीरिक घटना है जो एक लड़की को शारीरिक रूप से कमजोर नहीं बनाती है, बल्कि वह एक लड़की को मजबूत बनाती है। यह दर्शाता है कि अब वह जन्म देने में सक्षम होने के प्रथम चरण में प्रवश कर चुकी है और उसे पुरुषों से श्रेष्ठतर बनाती है। कुछ आहार और जीवन शैली में परिवर्तन का पालन करके, लड़कियां विभिन्न शारीरिक और मानसिक परिवर्तनों का भी सामना कर सकती है जो मेनार्च – रजोदर्शन के आरम्भ के साथ शुरू होते हैं।