बालक को पहले ६ महिने सिर्फ स्तन्यपान करना चाहिए। छह महीने के बाद ऊपर का अन्न शूरू कर सकते है लेकिन सवा, डेढ़ वर्ष तक स्तन्यपान कराते रहना चाहिए।
आयुर्वेदने स्तनपान कराने का महत्व बताते हुए ऐसा वर्णन कीया हे की अगर किसी कारण वश बालक की माता स्तनपान ना करा सके, तो उसी के स्वभाव और उम्र की दूसरी निरोगी स्त्री को स्तनपान कराने की व्यवस्था करवानी चाहिए। उस स्त्री को ‘धात्री‘ कहा है।
अगर मां या धात्री दोनों का भी दूध बच्चे को ना मिल सके, तो बकरी या गाय का दूध पिला सकते हैं। बालक के संपूर्ण आरोग्य और मां की प्रकृति के दृष्टि से स्तनपान सर्वोत्तम है और इसके लिए बच्चा गर्भ में रहता है तभी से माता को शतावरी कल्प जैसे बहु उपयोगी औषधि की योजना करनी चाहिए। डिलीवरी के बाद भी खीर, शतावरी कल्प डालकर पिया हुआ दूध, घी वगैरह माता को लेना चाहिए, इससे ‘स्तन्य‘ उत्पत्ति मतलब मां का दूध बढ़ने के लिए मदद होती है। आजकल की नए माता स्तनपान देने की इच्छा नहीं करती, अगर ऐसा किया तो मां का दूध घट जाता है और हारमोंस की औषधियां या इंजेक्शन लेने पड़ते हैं और उसके विपरीत परिणाम स्त्री की प्रकृति के ऊपर होता है और बालक को भी मां के अमृत समान दूध से वंचित रहना पड़ता है। इसलिए मां को आनंद के साथ स्तन्यपान बालक को कराना चाहिए। उसमें मां का भी हित है और बालक के संपूर्ण शरीर का भी विकास होता है ।
स्तनपान करने वाला बालक संपूर्णतया ही माता के आहार और आचरण के ऊपर निर्भर रहता है। माता के खाने, पीने, बोलने, व्यवहार करने आदि का सारा परिणाम बालक के ऊपर होता रहता है। इसीलिए बालक के आरोग्य को ठीक रखने की दृष्टि से माता को खुद की पूरी देखभाल करनी चाहिए। ‘स्तन्य दुग्ध‘ ही बालक का पूर्ण आहार होता है। इसलिए स्तन्य दुग्ध में किसी भी प्रकार की विकृति ना होना जरूरी है। आयुर्वेद के हिसाब से शुद्ध स्तन्य के लक्षण बताए गए हैं, मतलब मां का शुद्ध प्राकृत दूध कैसा होता है इसका वर्णन किया गया है।
मां का शुद्ध दूध कैसा होता हैं?
‘‘स्तन्यसम्पत्तु प्रकृतिवर्णगन्धरसस्पर्शम्,
उदकपात्रे च दुह्यमानमुदकं व्येति
प्रकृतिभूतत्वात् तत् पुष्टिकरमारोग्यकरं चेति।’’
– चरक शारीरस्थान
स्तन्य दूध साफ, पतला और शीतल (बहुत गर्म नहीं) ऐसा होता है। उसका रंग शंख के समान सफेद और स्निग्ध होता है। वह मीठा होता है।
कांच की कटोरी में साफ पानी ले और उसमें मां के दूध के मतलब स्तन्य (दूध) के यदि तीन चार बूंद डालें और देखे की अगर स्तन्य दूध पानी में घुल मिल जाता है, तो उसे शुद्ध समझ सकते हैं।
ऐसा स्तन्य दूध बालक के लिए आरोग्य कारक और पोषक होता है।
आजकल बहुत स्त्रियों में स्तन में दूध कम तैयार होता दिखाई देता है। उनकी परेशानी होती है कि दूध कम है। दूध कम होने की अनेक वजह हो सकते हैं।
मां को दूध कम है उसके क्या कारण हो सकते हैं?
‘‘क्रोधशोकवात्सल्यादिभिश्च स्त्रियाः
स्तन्यनाशो भवति।’’
– सुश्रुत शारीरस्थान
क्रोध, शोक, वात्सल्य का अभाव, उपवास, अति व्यायाम, चिंता वगैरह कारणों से स्तन्य अर्थात मां का दूध कम प्रमाण में उत्पन्न होता है। आजकल बहुत स्त्रियां नौकरी करती हैं। इसकी वजह से उनको शारीरिक और मानसिक समस्याएं होती है और खुद की तरफ ज्यादा ध्यान नहीं दे पाती। उनका आचरण, आहार इसमें भी ठीक से देखभाल नहीं कर पाती है। परिणामतः स्तन्य उत्पत्ति ठीक प्रमाण में नहीं होती। आयुर्वेद के हिसाब से रसधातु का और स्तन्य का खूब नजदीक का संबंध है। रसधातु यह पहला धातु आयुर्वेद में बताया गया है। जो शरीर को धारण करते हैं वह धातु होते हैं। सात धातु हैं, उसमें पहला रस धातु है और रस का उपधातु स्तन्य है। इसीलिए स्त्री को किसी भी तरह का मानसिक तनाव नहीं लेना चाहिए इससे स्तन के ऊपर विपरीत परिणाम होता दिखाई देता है।
मां का दूध बढ़ाने के लिए क्या उपाय आयुर्वेद में बताएं गए है?
मां का दूध थोड़ा भी कम होता दिखाई दिया तो जल्द ही नीचे बताए गए उपाय करना शुरू कीजिए-
- शतावरी कल्प २ चम्मच एक कप दूध में सुबह शाम पीना चाहिए।
- सुबह-शाम हलीम की खीर या फिर हलीम और नारियल का लड्डू खाना चाहिए।
- दोपहर के खाने में ताजा मक्खन और खड़ी शक्कर (मिसरी), देसी गाय का घी खाने के साथ लेना चाहिए।
- सिंघाड़ा का आटा और गुड़ डालकर किया हुआ हलवा भी खाने से दूध बढ़ने में मदद मिलती है।
- केसर और शक्कर डाली हुई सुजी की खीर खा सकते है।
- सब्जी या दाल को तड़का लगाते वक्त हल्दी का ज्यादा समावेश करें।
- हींग का भी उपयोग करें।
- दाल और सब्जी में भिगोए हुए मेथी दाने का इस्तेमाल करें।
- जीरक अजवाइन तिल बड़ीसेप का मिश्रण खाना खाने के बाद मुख शुद्धि के लिए खा सकते हैं
- हफ्ते में दो बार कुलथी का सूप पी सकते हैं, सूप तैयार करते वक्त उसमें जीरे और अमसुल डालें। इससे स्वाद बढिया आता हैं और औषधिय गुण भी बढते हैं।
- तिल के तेल से दोनों स्तनो पर मसाज करना चाहिए
मां के स्तनों में दूध ही नहीं है तो बच्चे को क्या खिलाएं?
‘‘स्तन्याभावे तद्गुणम् इति पूर्वोक्तस्य
स्रीस्तन्यस्य सर्वैः आकारादिभि गुणैः सर्वस्यं पाययेत।
गव्यं छागं बृहत्यादिभिः मूलैः लघुनापंचमूलेन सिद्धं स्थिराभ्यां
वा सिद्धं वा सितायुतम् ।’’
– अ. सं. शा. उ. १ध्४४ इंदू टीका
अगर मां का दूध नहीं है, तो बच्चे को बकरी का या गाय का दूध दे सकते हैं। बकरी का दूध ज्यादा बेहतर है क्योंकि वह पचन के लिए हल्का है। लेकिन व्यावहारिक दृष्टि से देखे तो बकरी का दूध मिलना मुश्किल है शहर में, तो हम गाय का दूध दे सकते हैं। या फिर बाजार में मिलने वाले टोंड मिल्क का इस्तेमाल कर सकते हैं। पाश्चराइज्ड दूध की जगह पर ताजा दूध अगर मिलता है तो वह देना चाहिए। अगर बकरी या गाय का दोनों का दूध उपलब्ध नहीं है तो भैंस का दूध दे सकते हैं। भैंस का दूध पचन के लिए कठिन होता है इसलिए उसमें दूध के साथ आधे प्रमाण में पानी मिलाकर देना चाहिए। बच्चों के लिए पोषण करने के लिए दूध से बेहतर दूसरा कोई भी उत्तम अन्न घटक नहीं है। इसलिए दूध का महत्व बताया गया है। बच्चे की भूख, उम्र और उसकी प्रकृति के अनुसार दूध का प्रमाण निश्चित करना चाहिए।
एक महत्वपूर्ण बात बताना चाहूंगी कि बच्चे को बाजार में मिलने वाले पैक्ड पाउडर से तयार करके पिलाने वाला दूध ना दें। क्योंकि वह पचन के लिए बहुत ही कठिन होता है और बोतल से भी बच्चों को दूध ना पिलाए तो बेहतर है। प्लास्टिक की चीजों का इस्तेमाल जितना कम कर सकते हैं उतना सेहत के लिए अच्छा है। अगर कुछ पर्याय उपलब्ध ही नहीं है तो पानी में 20 मिनट उबालने के बाद बोतल का दूध बच्चों को दे सकते हैं और चांदी के चम्मच और कटोरी में दूध पिलाना ज्यादा फायदेमंद है क्योंकि चांदी में रोगप्रतिकारक शक्ति बढ़ाने वाले गुण होते हैं जो दूध के साथ बच्चे के शरीर में जाकर उनकी सेहत को बढ़ाते हैं।