‘‘पहले मेरी बेटी प्रत्येक महिने मे एक बार तो जरूर बीमार हो जाती थी। उसे बच्चों के डॉक्टर के पास ले जाना पड़ता था, ऐडमिट करवाना पड़ता था। अब लगभग बीमार पड़ना बंद हो गया है।”
“हमारा सुहास पहले बहुत कम बात करता था, अब स्पष्ट रूप से और बहुत सारी बातें करता है।‘‘
“पिछले कुछ दिनों में मेरे बच्चे की भूख और ऊंचाई बढ़ी है।‘‘
“अब अध्ययन करने के लिए मेरे बेटे प्रतीक के पीछे लगने की जरूरत नहीं पडती। अब उसके अभ्यास की गति बढ़ गई है और जो पढ़ाया गया है वह उसे अच्छी तरह याद भी रहता है।‘‘
यह ऊपर दिए गए संभाषण बच्चों के माता-पिता के हैं जिन्होंने हमारा बनाया हुआ आयुर्वेदिक प्रतिकार-शक्ति वर्धक औषध – सुवर्णप्राशन अपने बच्चों को दिया है।
ऐसे कई उदाहरण हम खुद देखते हैं । हर बार बच्चों के नाम बदलते हैं, बच्चों के बारे में शिकायतें बदलती हैं, लेकिन अनुभव वही है और उनकी शिकायतें दूर करने का कारण भी एक ही है… सुवर्णप्राशन।
आज कल बहुत सारे आयुर्वेदिक डॉक्टर अपने अस्पताल में सुवर्णप्राशन का कार्यक्रम प्रत्येक माह के ‘‘पुष्य‘‘ नक्षत्र के दिन आयोजित करते हैं। अब तो ‘‘सुवर्णप्राशन‘‘ घर-घर पहुंच गया है। लेकिन अभी भी बहुत सारे लोगों को इसका ज्ञान नहीं है या फिर कुछ लोगों को सुवर्णप्राशन की जानकारी नहीं है, यह क्या है यह समझ नहीं पाए हैं। उनके लिए यह लेख प्रस्तुत किया गया है।
सुवर्णप्राशन बनाने और बच्चों को देने के हर डॉक्टर के तरीके कुछ अलग हैं। हमारे अस्पताल में जो सुवर्णप्राशन बनाया जाता है, उसमें मुख्य तीन सामग्री का उपयोग किया जाता है।
1) औषधी घी, 2) शहद और 3) सुवर्णभस्म।
औषधी घी यह बुद्धि की वृद्धि और विकास करने के लिए उपयोगी हैं। यह घी आयुर्वेदिक औषधियां जैसे ब्राह्मी, वचा, शंखपुष्पी आदि की मदद से बनाया जाता है। इस तरह से बनाया गया घी और शहद के मिश्रण की एक निश्चित मात्रा हर दिन बच्चे को देने से उसकी रोग प्रतिकार शक्ति बढ़ाने का कारण बनता है। और सुवर्णभस्म तो आयुर्वेद के अनुसार बुद्धिवर्धक कहा गया है। इस तरह सुवर्णप्राशन के माध्यम से बुद्धि और रोग प्रतिकारक क्षमता दोनों प्राप्त होती है।
आयुर्वेदिक डॉक्टर, बच्चे की उम्र के हिसाब से योग्य स्वर्ण भस्म की मात्रा का औषधि में इस्तेमाल करते हैं।
हम में से कई लोगों को जन्म के बाद अपने माता-पिता ने सोने की अंगूठी शहद के साथ चटाई है। आयुर्वेद के अनुसार बच्चों में जन्म के बाद किए जाने वाले ‘जातकर्म संस्कार‘ में से ‘सुवर्णप्राशन संस्कार‘ का वर्णन किया गया है।
सुवर्णप्राशन हर महीने के ‘ पुष्य नक्षत्र‘ के दिन बच्चों को देना चाहिए, सुवर्णप्राशन देने की शुरुआत इस दिन से करने को कहा गया है लेकिन आजकल के माता-पिता नौकरी करते हैं और अनुकूलता होने पर कर सकते हैं। पुष्य नक्षत्र का महत्व यह है कि इस दिन, चंद्रबल अधिक होता है। इस दिन बच्चे जो कुछ भी खाते हैं, उनके शरीर में उसका अच्छी तरह पाचन होता है। ऐसा माना जाता है कि पुष्य नक्षत्र पोषण (nutrition) करने वाला, ऊर्जा (energy) और शक्ति (power) को बढ़ाने वाला, तथा संरक्षण-संवर्धन और समृद्धि देनेवाला शुभ दिन होता है। इसलिए इस दिन किए गए कार्यों के प्रतिफल अच्छे होते हैं। यह सत्ताईस नक्षत्रों में आठवां है, बहुत ही शुभ माना जाता है। यदि यह नक्षत्र जब गुरुवार को आता है, तो हम इसे ‘गुरुपुष्यमृत योग‘ कहते हैं। इस दिन शुरू किए हुए सभी काम शुभ माने जाते हैं, और वे सफल भी होते हैं।
सुवर्णप्राशन में जिस ‘सुवर्णभस्म‘ का उपयोग किया जाता है वह कोई साधारण सोने के गहनों का किया हुआ भस्म/चूर्ण नहीं होताः 24 कैरेट का सोना भी आयुर्वेदिक दृष्टिकोण से अशुद्ध होता है।
बहुत सारे महान औषधीय संस्कार करके अशुद्ध सोने का शुद्ध सोने में रूपांतर किया जाता है। इस शुद्ध सोने की राखध् भस्म का विभिन्न आयुर्वेदिक दवाओं में प्रयोग किया जाता है। इस प्रकार यदि शुद्ध सुवर्णभस्म का उपयोग किया जाता है, तो शरीर में इसका पाचन और अवशोषण अच्छी तरह होता है, और शरीर पर यह अच्छे परिणाम दिखाता है।
आजकल बच्चों को दिए जा रहे ‘टीके‘ (vaccine) कुछ बीमारियों तक ही सीमित हैं और शरीर में उस बीमारी के कीटाणु प्रवेश करते है तभी उनका काम होता है। साथ ही साथ, बार-बार सर्दी, बुखार, खांसी के खिलाफ कोई भी टीका अनुपलब्ध है। लेकिन सुवर्णप्राशन यह सब ही विभिन्न रोगों के खिलाफ प्रतिकार- क्षमता का निर्माण करता है। विशेष रूप से सर्दी-खांसी के लिए अधिक उपयोगी है। बच्चों को सोना जरूर चटाना चाहिए लेकिन आयुर्वेद के अनुसार निर्धारित दिशानिर्देशों का पालन करने के बाद ही देना बेहतर होगा।
सुवर्णप्राशन औषधि का प्रयोग यह नए जन्मे हुए 1 दिन के बालक से लेकर 16 वर्ष की आयु तक करने को कहा है। स्वर्ण प्राशन शुद्ध स्वर्ण, आयुर्वेद की कुछ औषधियां रा निर्मित घी और शहद के मिश्रण से बनाया जाता है और यह शिशु के पैदा होने से लेकर शिशु की पूरी बाल्यवस्था तक या फिर कम से कम 6 महीने या एक साल तक चटाना चाहिए। यदि किसी कारणवश यह छूट भी जाता है तो इसे आप बच्चे की 16 साल की आयु के भीतर तक दोबारा शुरू कर सकते हैं।
स्वर्णप्राशन की फायदे- (Benefits of Swarna Prashan)
- बच्चों में रोग प्रतिरोधक क्षमता (पउउनदपजल) की वृद्धि होती है जिससे सामान्य मौसम में होने वाले रोगों से रक्षा होती है।
- बच्चों में स्मरण शक्ति का विकास होता है।
- बच्चों में शारीरिक व मानसिक विकास होता है।
- पाचन शक्ति को बढ़ाता है तथा शारीरिक बल में वृद्धि होती है।
- बच्चों की ऊंचाई बढ़ती है।
- बच्चों का बौद्धिक विकास होता है।
- उनकी समझ बढ़ती है एवं शब्द संग्रह बढ़ता है।
- बच्चों की कांति बढ़ती है और अच्छे स्वाभाविक बदलाव भी दिखाई देते हैं।
स्वर्ण प्राशन में सावधानियां –
- किसी भी प्रकार के बीमार बच्चे को स्वर्ण प्राशन ना करवाएं।
- स्वर्ण प्राशन करवाने के आधे घंटे पूर्व तथा आधे घंटे पश्चात किसी भी तरह का भोजन नहीं करवाना चाहिए।
- स्वर्ण प्राशन का प्रयोग प्रशिक्षित पंजीकृत वैद्य के द्वारा ही करवाएं।
- बच्चों में इसकी वैद्य के द्वारा निश्चित मात्रा ही सेवन करवाएं।
बच्चा मांगे या ना मांगे हम अपने बच्चों को दुनिया की बेहतरीन चीजों से खुशहाल करने की कोशिश में जुटे होते हैं, अतः हमें आरोग्य और बौद्धिक क्षमता बढ़ाने वाले सुवर्णप्राशन की भेट बच्चों को जरूर देनी चाहिए।