भगवान धन्वंतरि – आयुर्वेद जगत के प्रणेता
जैसा की विधित है कि भारतभर में दीपावली के दो दिन पूर्व का दिवस धनतेरस पर्व के रुप मे मनाया जाता हैं। इस दिन अधिकांश लोग नए बर्तन, आभूषण आदि खरीद कर उन्हें शुभ एवं मांगलिक मानकर उनकी पूजा करते हैं। उनके मन में यह दृढ़ धारणा तथा विश्वास होता है कि यह बर्तन और आभूषण उन्हे श्री वृद्धि के साथ धन-धान्य से संपन्न्ा रखेंगे तथा कभी भी रिक्तता का आभास नहीं होने देंगे।
वहीं दूसरी ओर आयुर्वेद के वैद्यों, भगवान धन्वंतरि के प्रति अपनी कृतज्ञता प्रकट करने के लिए इसी दिवस को आयुर्वेद दिवस के रुप मे भी मनाते है तथा उनसे यह प्रार्थना करते है कि वे उन वैधों को निमित्त बना कर समस्त जनमानस को निरोगी कर दीर्घायुष्य प्रदान करें। भगवान धन्वंतरि आयुर्वेद के देवता माने जाते हैं। भगवान विष्णु के चौबीस अवतारों के अंतर्गत इनकी गणना होने के कारण इन्हे श्रीराम तथा श्रीकृष्ण के समान ही माना जाता हैं। आयुर्वेद ग्रंथो के अतिरिक्त, आदि काल के कई अन्य ग्रंथ जैसे रामायण, महाभारत अथवा विविध पुराणों में भी, आयुर्वेदावतरण के प्रसंगो मे भगवान धन्वंतरि का उल्लेख मिलता है।
भगवान धन्वंतरि के अवतरण की कथा
आदि काल के ग्रंथो और विविध पुराणों के अनुसार, देवता एवं दैत्यों के समुद्र मन्थन के समय जब हलाहल, कामधेनु, ऐरावत, उच्चौःश्रवा अष्व, अप्सराएँ, कौस्तुभमणि, वारुणी, महाषंख, कल्पवृक्ष, चन्द्रमा, लक्ष्मी और कदली वृक्ष आदि प्रकट हो चुके थे, तब सब से अन्त में श्याम वर्ण, चतुर्भुज भगवान धन्वंतरि प्रकट हुए। मान्यता है कि धनतेरस अर्थात कार्तिक मास की त्रयोदशी तिथि को ही भगवान धन्वंतरि का समुद्र मन्थन से अवतरण हुआ था। इसी कारण धनतेरस के दिन ही आयुर्वेद दिवस मनाया जाता है।भगवान धनवंतरि चार भुजाधारी हैं, उनके एक हाथ में आयुर्वेद का ग्रंथ, दूसरे हाथ मे अमृत कलश, तीसरे हाथ मे शंख, और चौथे हाथ मे जडी बूटी, जलोका के साथ साथ शल्य यंत्र होते है। वे ही समुद्र से वह अमृत कलश लेकर निकले थे जिसके लिए बाद मे देवों और असुरो में युद्ध हुआ था और अमृतपान के पश्चात् जब देवराज इन्द्र और अन्य देवता अजर अमर हो गये तब देवराज इन्द्र ने भगवान धन्वंतरि को देवताओ के वैद्य का पद स्वीकार करने की प्रार्थना की। भगवान धन्वन्तरि ने इंद्र की उस प्रार्थना को मान लिया जिस कारण से वे देवताओ के वैद्य भी कहलाते है ।
वैद्य धन्वंतरि – भगवान धन्वंतरि का ही कलियुग मे पुनः आगमन
प्रचलित कथा ये भी है कि कलियुग के प्रभाव से पृथ्वी पर मनुष्य जब अनेक रोगों से अत्यन्त पीड़ित हो गये, तब प्रजापति इन्द्र ने धन्वन्तरि जी से प्रार्थना की और मानव कल्याण हेतु भगवान धन्वंतरि ने ही काशी के राजा दिवोदास के रूप में पृथ्वी पर अवतार धारण किया। इनके आयुर्वेद शास्त्र के प्रति विशाल ज्ञान और कुशाग्रता के कारण दिवोदास कलियुग मे वैद्य धन्वंतरि के नाम से प्रचलित हुए। इनकी ‘धन्वंतरि-संहिता’ आयुर्वेद का मूल ग्रन्थ है। वर्तमान के प्रचलित आयुर्वेद आचार्य सुश्रुत आदि ने धन्वंतरि जी से ही आयुर्वेद शास्त्र का उपदेश प्राप्त किया था।
भगवान धन्वंतरि का गुजरात से विषेश सबंध
भगवान धन्वंतरि आश्रम और समाधि स्थल, मोटी धनेज, गुजरात (Source: Internet)
अभी हाल ही मे भगवान धन्वंतरि से जुडा ये तथ्य गुजरात के पवित्र यात्राधाम बोर्ड के द्वारा प्रकाश मे लाया गया कि गुजरात के मोटी धनेज गांव, मलिया तालुका, जूनागढ़, सौराष्ट्र मे भगवान धन्वंतरि का वो आश्रम और समाधि स्थल है जहाँ भगवान धन्वंतरि ने अपने प्राणो का त्याग किया था। वहाँ के स्थानीय निवासी भी यही इतिहास बताते है, उनका कहना है कि जिस वट वृक्ष के नीचे भगवान धन्वंतरि ने अपने प्राण त्याग किये थे, वो आज भी वहाँ है। इन तथ्यो के बाद गुजरात के कई वैद्यों भी वहाँ गये और पाया कि उस स्थान मे भगवान धन्वंतरि की मूर्तिया बहुत पुरानी है जिस से गुजरात के इस स्थान का भगवान धन्वंतरि से कुछ विशेष एतिहासिक सबंध होने का निश्चित ही अनुमान लगाया जा सकता है।
भगवान धन्वंतरि आरोग्य, सेहत, आयु और तेज के आराध्य देवता हैं और ये सदा ही प्राणियों पर कृपा कर उन्हें आरोग्य प्रदान करते हैं। इसलिए हमारे प्रिय पाठको को आने वाली इस धनतेरस को हमारा यही शुभ संदेश है कि धनतेरस पर केवल धन प्राप्ति की कामना के लिए पूजा न करें परंतु स्वास्थ्य-धन की कामना के लिए भी पूजा करें क्योकि स्वस्थ आयु ही धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष की प्राप्ति का साधन और आधार है।