मुख्य अतिथि वक्ता
डो. शशिकुमार नेचीयिल
BAMS M.D. (Ayu.)
गुरू, राष्ट्रिय आयुर्वेदा विद्यापीठ
मुख्य चिकित्सक, नेचीयिल आयुर्वेदा वैद्यशाला
मुख्य कार्यकारी, सिध्धेश्वरा ड्रगस, पालकड, केरल.
‘मेटलमैन ओफ मैडिसिन’
आयुर्वेद क्या है?
सिर्फ एक पंक्ति में आयुर्वेद को समझना नामुमकिन है। आयुर्वेद जीवन का विज्ञान है, जो दो हिस्से में बंटा है। एक है अहतियात/ सावधानियां और दूसरा है उपचार। उपचार और सावधानियों के लिए आयुर्वेद में जिन दवाइयो का इस्तेमाल होता है उन में सभी प्रकार की वस्तुओ का उपयोग होता है जैसे मेटल, रसायन, वनस्पति या जड़ी-बूटी इत्यादि। आयुर्वेद में शल्य चिकित्सा भी होती है।
आयुर्वेद एक अभियान है, मिशन है। अलोपथीमैडिसिन में जहां सिर्फ प्रोब्लेम हो वहाँ उपचार किया जाता है लेकिन आयुर्वेद चेस के खेल जैसा है, इसमें जैसा रोग वैसा उपचार पद्धति के अनुसार होता है। ये एक “सम्पूर्ण विज्ञान” है
शशिकुमार नेचीयिल- मेटलमैन ओफ मैडिसिन
हमारे पुराने आयुर्वेद शास्त्र में आज के लिए जमाने के मेडिसिन साइंस की तरह इंजेक्शनसिस्टम या स्ट्रेरॉइड एडमिनिस्ट्रेशन सिस्टम जैसे सब प्रकार थे। तरीका हमारा अलग जरूर था लेकिन ये सब मौजूद था। चमड़ी के नीचे से इंजेक्शन जैसे प्रकार भीथे। समय के साथ ये सब लुप्तप्राय हो गया, जैसे केरल में धातु या खनिज के उपचार का प्रचार लुप्त हो गया था। पहले पारा (बुध) रस-चिकित्सा में उपयोग में लाया जाता था। पारे को हमारे शरीर में इस्तेमाल किया जा सके ऐसे रूप में बदल दिया जाता था। जब मैं जामनगर आयुर्वेद कॉलेज में पोस्ट ग्रेजुएशन कर रहा था तब मैने बहुत रिसर्च किया और पारे को रस-मेडिसिन्स के रूप में आयुर्वेद में उपयोग करना शुरू किया था। ये ज्ञान मुझे अपने पिताजी से मिला है जो रस-चिकित्सा उपचार करते हैं। सब से बड़ा डर लोगो में यही था कि की रस-चिकित्सा कहीं किडनी जैसे आंतरिक महत्वपूर्ण अंगों को नुकसान न पहुंचा दे। ये सच नहीं, बस एक डर था। मैंने जामनगर में पी.जी. करने के साथ में इसका प्रचार करने का काम किया और आज पूरे केरल में रस-चिकित्सा प्रचलित है। मेरे रस-विभाग में एक बार प्रेस वाले आये थे ओर उन्होने देखा कि मैं कैसे मेटल का इस्तेमाल दवा में करता हु यह देखकर उन्होने मुझे ‘‘मेटल मेन ओफ मेडिसिन‘‘ की उपाधि दी!
कलारी चिकित्सा क्या है और यह परम्परागत आयुर्वेदिक चिकित्सा से कैसे भिन्न है?
‘कलारिप्पयट्टू‘ केरल का एक पौराणिक मार्शल आर्ट है, जो केरल के सांस्कृतिक वंशक्रम का प्रतिनिधित्व करता है। कलारी एक पौराण् िाक ‘‘अखाड़ा‘‘ है जहां शारीरिक, मानसिक या धार्मिक शक्तियां बढाई जाती है। ये चिकित्सा पद्धति कलारी गुरु द्वारा शुरू की गई थी जिस का उपयोग युद्ध के दौरान हुए घाव के उपचार के लिए और योद्धा की शक्ति बढ़ाने के लिए होता था। खासकर अस्थि, मांसपेशियाँ और कंकाल की बीमारी में कलारी चिकित्सा का प्रयोग बहुत लाभदायी है। कलारी चिकित्सा योद्धा, नर्तक, खिलाड़ी और मंच कलाकार के लिये बहुत लाभकारी है। कलारी चिकित्सा, शरीर विज्ञान की ‘‘नाडियो‘‘ और ‘‘मर्मों‘‘ पर आधारित होती है। इस चिकित्सा में उपयोग की जाने वाली दवाइयाँ संपूर्ण जैविक (ऑर्गेनिक) होती हैं। कलारी चिकित्सा पुराने जमाने के आयुर्वेद का मूलमंत्र है। आज के जमाने की एलोपैथी उपचार या सर्जरी के बाद भी कई लोगो को कलारी चिकित्सा से बहुत ज्यादा फायदा हुआ है। कलारी चिकित्सा के कई तरीके स्पोर्ट्स मेडिसिन में भी आज-कल बहुत उपयोग में लिए जाते हैं। कलारी चिकित्सा केरल और तमिलनाडु में विशेष रूप से प्रचलित है।
सिद्धेश्वर ड्रग्स- दवाई उत्पादन केंद्र
जामनगर की आयुर्वेद कॉलेज में जब मैं एमडी का अभ्यास कर रहा था तब से मेरी इच्छा थी कि आयुर्वेद का अच्छा अभ्यास करना है, और साथ में मुझे पहले से ही आयुर्वेदिक विज्ञान के शोध में अधिक दिलचस्पी रही है। जब मैं एमडी पूरा करके वापिस केरल आया, और बतौर आयुर्वेदिक सलाहकार अपनी सेवा देने लगा तब मेरे सहपाठी डॉक्टरों ने कहा कि अगर आप रस-चिकित्सा की दवा बना के देंगे तो हम उसका उपयोग करेंगे क्योंकि हमारे लिए यह बनाना बहुत लंबी प्रक्रिया है। गुजरात में रह कर मेरे दिमाग में बिजनेस की सोच भी आ गई थी। जितने भी रसायन आयुर्वेद में उपयोग में आते हैं उन्हें निश्चित मात्रा में खुराक के रूप में प्रचलित किया। उसके लिए खूब अभ्यास किया और पूरा केरल घूम के सभी को रस-चिकित्साको प्रचलित किया। इसी तरह से आयुर्वेदिक फार्मेसी सिद्धेश्वर ड्रग्स की शुरुआत हुई। सिद्धेश्वर ड्रग्समें सिद्धा और आयुर्वेद का संयोजन कर के दवाइया बनाई जाती हैं। कई आयुर्वेदिक दवाओं की विशेषता यहाँ दे रहा हूँः-
1. स्वर्ण उत्पादः स्वर्ण भस्म, सिद्धमकरध्वजम, मानसमित्रवटकम, बृहत्त्वचिंतामणिरसम, जयमंगलरसम आदि
2. गुलिकाः कैशोरगुगुलुवटी, सूर्यप्रभावटी, वेट्टुमरनगुलिका, महाध् ानवंतरमगुलिका, मानसमित्रावटाकम
3. गोलियाँः अमरावतीरसम, आरोग्यवर्धिनीरसम, शिरशुल्डी वज्र रसम, श्वासनंदमगुलिका, नव्यासालोहाम, इच्छाभेदीरसम, सूर्यप्रभा वटी, त्रिभुवन कीर्ति रसम
4. कूपिपकवा रसायनः रससिंदूरम, स्वर्णवंगम, समीरा पन्नग रसम। नेचीयिलपरिवारिक परम्परा की ये फार्मेसीरस-सत्र पर आधारित सारे जरूरी क्लिनिकल ट्रायल पास कर चुकी है और दवाइया बहुत ही असरकारक और विश्वसनीय परिणाम दे रही हैं ।
पारंपारिक हर्बल प्रजाति
’सर्पकावु’ केरल की एक अलग ही परंपरा है। केरल में सर्प जीवो की पूजा होती है। उसी से ये परंपरा का नाम जुड़ा है। ये एक ऐसा मिनी जंगल है जो इंसान के हस्तक्षेप से बहुत दूर है।
हमारे नेचियिल परिवार ने 2 एकड़ जमीन पर सर्पकावु (सांप मंदिर) का कुदरती विकास किया है जहां बहुत ही उपयोगी आयुर्वेदिकपौधे, जड़ी-बूटियाँ और बहुत ही पुराने पेड़ हैं जैसे कि चिरुविल्वा पेड़ जो की 25 फीट के घेराव और 150 फीटकी ऊंचाई वाला है। जो आयुर्वेद की बहुत सी दवा बनाने में बहुत उपयोगी है जेसे कि बवासीर में चिरुविल्वा का काढ़ा दिया जाता है, साथ में इम्युनिटी बढ़ाने में भी चिरुविल्वा एक दवा के रूप में उपयोग है। ऐसे ही पूरी 2 एकड़ जमीन पर बहुत सारे नायाब हर्बल प्रजाति की दवाएं हैं। पुराने जमाने में सर्प जीवो के ऊपर अप्रतिम पूज्य भावना रखने वाले सरपक्कवु हर एक परिवार में हुआ करते थे जहां सब लोग साल में एक या दो बार जा के पूजा करते थे ओर वहा प्रसाद चढाते है। इस तरह प्रकृति का भी रक्षण होता है और साथ ही सांस्कृतिक परंपरा भी बनी रहती है।
मैंने भी आत्मविश्वास की यह कमी आयुर्वेद के विद्यार्थियों में देखी है। ठ।डै की पढाई पूर्ण करने के बाद अनुभवी चिकित्सक के पास अभ्यास करना अति आवश्यक है। हमें ठ।डै के पाठ्यक्रम के अनुसार यह विषय गहराई से आधुनिक रूप मे सविस्तार पढ़ा तो देते हैं पर दिक्कत यह आती है कि इन बीमारियों का जितना अनुभव मिलना चाहिए, उतना हो नहीं पाता। ऐसे कई रोग और रोगी के लक्षणों के बारे में हमारे आचार्यांे (चरक, वाग्भट आदि) ने बहुत अच्छे से बताया है। एक बार विद्यार्थीं यह सब देखेंगे या अनुभव करेंगे या मानव शरीर पे गुरु के मार्गदर्शन में उपचार करेंगे तो ही उनका आत्म विश्वास आयुर्विज्ञान में बढ़ेगा। इसी लिए ठ।डै के बाद, गुरु के मार्गदर्शन में दैनिक प्रशिक्षण आवश्यक है। हमें अपने विद्यार्थी को दिखाना है कि केसे कौन सी दवाई असर करती है या उपचार करती है या कैसे हमें दवाई बनानी है – जिससे उनका आत्मविश्वास अपने आप बढ़ेगा।
आयुर्वेद के अभ्यास की बहुत ज्यादा गुंजाइश है हमारे देश में। सिर्फ इंडिया में नहीं लेकिन यूके, ऑस्ट्रिया, जर्मनी, जापान और इटली में जितने भी आयुर्वेदिक अस्पताल हैं, जो सब पूरी क्षमता से काम कर रहे हैं। जब कोरोना के दौर में नए मरीजों को जल्दी से अपॉइंटमेंट भी नहीं मिल रही थी तब दुनिया के कई हिस्सोंमें आयुर्वेदिक उपचार के प्रति जागरूकता आ गई। इस संदर्भ में लोगों में और ज्यादा जागरुकतालाने के लिए आयुर्वेद पर लेख लिखने चाहिए या आप जेसे मैगजीन में प्रकाशित करके आयुर्वेद का प्रचार करना जरुरी है। एक बार कुछ लोग जापान से मेरी वैद्यशाला में आए और आयुर्वेद के इस ज्ञान को कार्टून के माध्यम से जापान की प्रसिद्ध किताब में प्रस्तुत किया। लोगों में आयुर्वेद प्रति जागरूकता बढ़ी। यह आयुर्वेद के लिए नया आयाम है। इसके अलावा आयुर्वेद में बहुत कुछ किया जा सकता है, सिर्फ कॉस्मेटिक या निवारक दवा ही नहीं, आपातकालीन दवा की भी बहुत गुंजाइश है।
सिद्धेश्वर ड्रग्स के शुरुआत के दौर में कैसी परेशानियो का सामना हुआ?
केरल में रस औषधि के आरंभ के दिनो में बहुत परेशानियाँ झेलनी पड़ीं। औषधशाला शुरू करने के लिए सरकारी स्वीकृति आवश्यक थी, उसके परीक्षण के लिए अधिकारी जब आये तब पारे का उपयोग आयुर्वेद की दवा में नहीं करना है ऐसा कह दिया गया। इस के अलावा भी कुछ वैद्यों ने एक भ्रांति के चलते सहकार नहीं दिया और विरोध भी किया कि रस-औषध में नकारत्मक ऊर्जा होती है तथा वैद्यों को नुक्सान हो सकता है। लेकिन ऐसी सभी परेशानियों को पार करते हुए मैं इस सिद्धेश्वर ड्रग्स को आज इस बड़े मुकाम पर लेकर आया हूं।
मैं जब पहेली बार 1996 में जापान गया था तब मुझे एयरपोर्ट पर दो घंटे तक रुकना पड़ा था, क्यूंकि वो ऐसा समझे कि मैं आयुर्वेद के धार्मिक प्रचार के लिए आया हूं। उस वक्त मैंने आयुर्वेद पर लिखी हुई अपनी किताब दिखाई जो उनको बहुत पसंद आई, और मेरी आयुर्वेद प्रैक्टिस की उन्हीं दो किताबो को बाद में जापान की पब्लिक लाइब्रेरी में जगह दी गई। सात साल बाद मुझे जापान के ओसाका शहर में अंतर्राष्ट्रीय आयुर्वेद सोसायटी (ओएसएसीए-जापान) में आमंत्रित भी किया गया था, मेंने देखा कि इन पिछले सात सालो में जापान में आयुर्वेद बहुत ही प्रचलित हो गया था।
श्री डो. शशिकुमार नेचियिल द्वारा आज के विद्यार्थी और आयुर्वेद की प्रैक्टिस करने वालो के लिए संदेशः
ये हमेशा याद रखना होगा कि आयुर्वेद में असंभव, पुराने, और बहोत से रोगो के सही और त्वरित उपचार करने की पूरी क्षमता है। जब आप आयुर्वेद पढ़ें तो पूरे ध्यान से पढ़ना होगा, और फिर किसी अच्छे और वरिष्ठ अनुभवी आयुर्वेदिक वैद्य के साथ कुछ साल काम करके अपने विश्वास को सुदृढ़ करना होगा। मैंने भी कई केस – स्टडीज लिखी हैं, मेरे साथ कुछ वक्त जुडकर अपना अनुभव बढ़ा सकते हैं। मेरी हॉस्पिटल में या अन्य जगहों पर पुरानी बिमारियो के त्वरित उपचार का अभ्यास करना लाभकारी और आवश्यक है। भविष्य में मेरी इच्छा है कि एक और मिशन, एक कोर्स शुरू करूँ जिसमें ठ।डै के बाद यहां आकर यह सीखा जा सके कि आयुर्वेद क्या है और आयुर्वेद की वो विशेषताएँ क्या हैं जो सीखने का समय विद्यार्थियों को सामान्यतः नहीं मिलता
व्यापारिक रूप से आयुर्वेद का अध्ययन लोकप्रिय कैसे बनाऐ?
मेरा यह मानना है कि आयुर्वेद की प्रैक्टिस करने वाले वैद्य को ज्यादा से ज्यादा आर्थिक सहयोग मिले। सरकारी एवं प्राइवेट संस्थाओ में आयुर्वेदज्ञ वैद्यो का मासिक वेतन एलोपैथी चिकित्सक की तुलना में कम होता है। यह एक मुख्य कारण है कि आज के बच्चे आयुर्वेद के बदले आईटी को अधिक चुनते हैं क्यूंकि आईटी में वेतन अधिक मिलता है। हालांकि आयुर्वेद और एलोपैथी दोनों की पढ़ाई में शरीर- विज्ञान की पढ़ाई एक समान ही है तो फिर वैद्यों का वेतन कम क्यूँ? आयुर्वेदिक विज्ञान पढ़ाने वाले शिक्षको को और अच्छा प्रशिक्षण मिलना आवश्यक है, और आयुर्वेद क्लिनिक और अस्पताल की संख्या भी अधिक होनी चाहिए। यह भी आवश्यक है कि मीडिया आयुर्वेदिक शास्त्र की उपयोगिता और प्रभाव को देश के समक्ष प्रस्तुत करे।
सिद्धेश्वर ड्रग्स से दवाएं प्राप्त करने का माध्यमः
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