अगर आप अपनी मध्य आयु या ६० मे है और आपको अपने भावनात्मक बर्ताव एवं व्यवहार मे परेशानी हो रही है या संघर्ष कर रहे हे तो हो सकता है कि आप उम्र से जुड़ी समस्या से गुजर रहे है। अगर एसा है तो आपको निःसंकोच मदद लेनी चाहिए। अपने मित्र एवं रिश्तेदारों से इस बारे मे बात करे कि आप इस तकलीफ का सामना कर रहे है।
WHO के अनुसार डिमेन्शिया और डिप्रेशन ये दोनों मेंटल न्यूरोलोजिकल कंडीशन ओल्ड एज मे बहुतया पाई जाती है। डिमेन्शिया ५% और डिप्रेशन ७% पूरे विश्व मे ओल्डएज पॉप्युलेशन मे पाये जाते है।
मुझे लगता है कि लोगो को समझना चाहिए कि हमारा मन और उसकी स्वस्थता भी इतना ही महत्वपूर्ण हे जितना शरीर और उसके दूसरे अंग। क्योकि आप मानसिक विकारो को शारीरक रूप से देख नहीं सकते जैसे आप टूटी हड्डी को भलीभाँति देख सकते है। तो मानसिक स्वास्थ्य को हम इतना महत्व नहीं देते और ना ही उसका इलाज करवा ने मे तत्परता दिखाते है। अगर आप मानसिक तौर पे बीमार हे तो वे पूरे फेमिली और खुद के लिए भी परेशानी कि वजह बन सकता है। तो आइए अपनी मानसिक स्वस्थता के लिए हम जागृत बने और अपनी संकुचितता को दूर करे।
सामान्य तौर पर इस उम्र मे जो मानसिक विकारो का सामना करते है, उसमे स्मृतिभ्रंश (डिमेन्शिया), विषाद (डिप्रेशन), चित उद्वेग (एंग्जायटी) और उन्माद (सीजोफ्रेनीया) है।
स्मृतिभ्रंश (डिमेन्शिया): यह एक बीमारी नहीं है बल्कि लक्षणो के समूह का नाम है इनसे दिमाग को नुकसान पहुच सकता है और क्योकि हमारे शरीर को हमारा दिमाग ही नियंत्रित करता है इसलिए डिमेन्श्या के चलते इससे पीड़ित व्यक्ति अपने नियमित काम ठीक से नहीं कर पाता। इसमे रोजमरा के कामो मे कठिनाई संवाद मे कठिनाई, निर्णय लेने की क्षमता या व्यक्तित्व मे बदलाव ये सब समस्याएं आती है। आमतौर पर समय के साथ यह बीमारी आती है जैसे जैसे यह बीमारी बढ़ती है आप अन्य लोगो पर ज्यादा निर्भर होने लगते है। यह समस्या वृद्ध लोगो मे ज्यादा होती है हालांकि 40 वर्ष की आयु मे भी इसकी शरूआत हो सकती है। 65 वर्ष की उम्र तक हर बीस मे से एक व्यक्ति को एवं 80 वर्ष की उम्र तक हर पाँच मे से एक व्यक्ति को हो सकता है।
स्मरणशक्ति संबंधी समस्याओ मे सहायता के लिए कुछ सरल व्यावहारिक सलाह – 1) अपने सूचीबद्ध कार्यो को याद रखने के लिए डायरी का उपयोग करे, 2) अपने मस्तिष्क को विभिन्न कार्यो द्वारा क्रियाशील रखे जैसे की पढ़ना, पहेलिया हल करना, सूडोकू हल करना और इसी प्रकार के अन्य कार्य करें, 3) अपनी सेहत एवं आयु के अनुसार नियमित रूप से व्यायाम करें, 4) पोषक भोजन करें।
विषाद (डिप्रेशन): विषाद का अर्थ होता है दुख। यह अपूर्ण इच्छाओं और निराशा के प्रभाव से होनेवाली मानसिक दुविधा जो व्यक्ति को हताशा और कुंठा से घेर लेती है। अगर ज्यादा हो जाए तो आत्महत्या करने के लिए प्रेरित कर देता है। ऐसा व्यक्ति नित्य दुःख घबराहट चिंता और आशंकाओ से घिरा रहता है। इसके भौतिक कारण मे – कुपोषण आनुवंशिकता होर्मोन मौसम तनाव बीमारी नशा अप्रिय स्थिति में लंबे समय तक रहना आदि हो सकते है। पुरुषो की अपेक्षा महिलाओ को डिप्रेशन से पीड़ित होने की संभावना ज्यादा होती है। डिप्रेशन लाइलाज रोग नहीं है। डिप्रेशन के अलग-अलग लोगोंमे अलग अलग लक्षण होते है जैसे – दिनभर उदासी लगभग हरदिन थकावट और कमजोरी महसूस करना, स्वयं को अयोग्य या दोषी मानना एकाग्र रहने तथा फैसले लेने में कठिनाई होना लगभग हररोज बहुत अधिक या बहुत कम सोना या बिलकुल नींद ना आना सारी गतिविधियो मे नीरसता आना बार बार मृत्यु या आत्महत्या के विचार आना बेचनी या आलस्य महसूस होना, अचानक से वजन बढ़ाना या कम होना-अगर किसी को इनमे से 5 या उससे अधिक लक्षण 2 सप्ताह या उससे ज्यादा समय तक बने रहते है तो उसे डिप्रेशन रोग हो सकता है। डिप्रेशन एक मानसिक समस्या है लेकिन यह रोगी को शारीरिक रूप से भी प्रभावित करती है जैसे थकावट दुबलापन या मोटापा सरदर्द अपाचन इत्यादि। इसी कारण कई मरीज इन शारीरिक लक्षणो का इलाज करवाने भटकते है लेकिन इन लक्षणो के जड़ में छिपे डिप्रेशन पर ध्यान नहीं जाता। इसलिए परिवार जनो को सजग रहना चाहिए और उनके परिवार का कोई सदस्य गुमसुम रहता है अपना ज्यादातर समय अकेले में बिताता है निराशावादी बातें करता है तो उसे तुरंत किसी अच्छे मनोचिकित्सक के पास लेजाए उसे अकेले में न रहने दें और हो सके उतना उसे प्रसन्न रखने की कोशिश करें।
इसके उपचार मे योगासन, प्राणायाम बहुत सहायक सिद्ध हुए है। आजकल इसके कई सारे अलग अलग इलाज उपलब्ध है। एक मनोरोग चिकित्सक डिप्रेशन के प्रकार और गंभीरता के आधार पर सही उपाय का चुनाव करता है जैसे – काउन्सलिन्ग, व्यवहार परिवर्तन, ग्रुप थेरपी, दवाईयॉं या मिश्रित पद्धति। सही इलाज के बाद डिप्रेशन के मरीजों में से अधिकांश पूरी तरह से ठीक होकर अपनी सामान्य जिंदगी मे लौट पाते है। किन्तु याद रखे इस गंभीर समस्या से बाहर आने के लिए व्यक्ति को चिकित्सकीय सहायता की जरूरत होती है।
चित उद्वेग (एंग्जायटी): एंग्जायटी अवसाद निराशा व दुःख से जन्म लेती है। जब हम अपनी भावनाओं को अनदेखा करते है तो वे हमारे दुःख का कारण बनती है। ठीक इसी प्रकार नजर अंदाज किए जाने पर अवसाद एंग्जायटी का रूप ले सकता है। इस स्थिति में व्यक्ति को हर वक्त डर व घबराहट महसूस होती है। एंग्जायटी के दौरे (पैनिक अटैक) होते है। व्यक्ति को हर समय चिंता डर जी मचलना, दिल की धड़कन तेज हो जाना, पसीना आना सांस फूलना लोगो के सामने जाने से डरना, माँसपेशीओ में तनाव आदि लक्षण देखने को मिलते है।
एंग्जायटी का इलाजः हम इस समस्या से छुटकारा पा सकते है परन्तु इस समस्या की गंभीरता को कम नहीं समझना चाहिए। अगर एंग्जायटी के एक भी लक्षण से आप आपके परिवार का कोई व्यक्ति या जान पहचान का कोई इंसान पीड़ित है तो सबसे अच्छा यही है कि इलाज के लिए आप किसी अच्छे चिकित्सक मनोचिकित्सक या मनोवैज्ञानिक की मदद लें। एंग्जायटी का इलाज दवाओं और काउंसलिंग दोनों के मिले-जुले इस्तेमाल से बेहद आसानी से किया जा सकता है। सावधान रहने और चिंता करने में बहुत अंतर है! सावधान रहने का मतलब जागृत होना है जबकि चिंता करने का मतलब विचारों को गहराई से सोचते रहना है जो आपको अंदर ही अंदर से खा जाती हैं इसलिए सावधान रहिए चिंतित नहीं।
सिजोफ्रेनियाः सिजोफ्रेनिया के मरीज को अजीब सी आवाजें सुनाई देती हैं। उन्हें ऐसी चीजें दिखाई और महसूस होती हैं जो असल में होती ही नहीं हैं। इसके अलावा कई मामलों में उन्हें चीजों का स्वाद और खुशबू महसूस होने की शिकायत होती है जो वहां होती ही नहीं हैं। हालांकि मनोचिकित्सकों के पास सिजोफ्रेनिया के मरीजों को होने वाले विचित्र अनुभवों की लंबी लिस्ट होती है। ऐसे मरीज के साथ सबसे बड़ी समस्या ये होती है कि वो ये मानने को ही तैयार नहीं होता है कि जो वो देख या सुन रहा है वो असल में नहीं है। उसे लगता है कि लोग जबरन उसे गलत ठहराने की कोशिश कर रहे हैं। क्योंकि वो तो सामने खड़ी अवास्तविक चीज को भी देख या सुन रहा होता है।
सिजोफ्रेनिया के मरीज में कुछ भी करने की इच्छा खत्म हो जाती है। मरीज रोजमर्रा के जरूरी काम जैसे कपड़े धोना और खाना बनाने तक को टालने लगता है।
जब सिजोफ्रेनिया का मरीज सामाजिक रूप से खुद को अलग-थलग कर लेता है। उसे अक्सर ऐसा लगता है कि कोई उसे नुकसान पहुंचाना या फिर मार डालना चाहता है। सिजोफ्रेनिया के मरीज को दिखाई देने वाले मायावी दृश्य और भ्रम इतने असली होते हैं कि उसे यकीन ही नहीं होता है कि वह बीमार हैं। वह साइड इफैक्ट्स के डर से दवाएं खाना भी बंद कर देते हैं। उन्हें ये भी डर हो सकता है कि उन्हें दवाओं की जगह पर जहर दिया जा सकता है।
इस दुनिया में कोई भी बीमारी लाइलाज नहीं है। जरुरत है तो सिर्फ मरीज की इच्छाशक्ति और सही इलाज की। सिजोफ्रेनिया की बीमारी का भी इलाज संभव है। मनोवैज्ञानिक इस बीमारी के इलाज के लिए काउंसलिंग साइकोथेरेपी सेशन की मदद लेते हैं। साइकोलॉजिकल काउंसलिंग से सिजोफ्रेनिया के लक्षणों को ठीक करने में मदद मिलती है।
आयुर्वेद द्रष्टिकोण से मानसिकरोग एवं चिकित्साः
आयुर्वेद के अनुसार तीन प्रकार के मानसिक दोष होते है – सत्व रज और तम। सत्व दोष मस्तिष्क की शुद्धता और गुणवत्ता का प्रतीक है रजसदोष मस्तिष्क की गतिशीलता और सक्रियता जब की तमस दोष अंधकार और निष्क्रियता को दर्शाता है। माना जाता है कि अधिकतर मानसिकरोग इन मानसिक भावो के खराब होने पर ही होते है। मानसिक रोगो मे मनोरोग व्यक्तित्व से संबन्धित विकार, मनोदैहिक विकार, व्यवहार और तंत्रिका संबंधी समस्याए एवं मानसिक मंदता शामिल है। शोक(दुःख), मान(अभिमान), भय(डर), क्रोध(गुस्सा), उद्वेग(अशांत रहेना), अतत्वभिनिवेश(बुद्धि भ्रंश), उन्माद(पागलपन), अपस्मार(मिर्गी) आदि का आयु