पिछले 2 अंकोंमें नवजात बालककी रोगप्रतिकारक क्षमता सुवर्णप्राशन के जरिए हम कैसे बढ़ा सकते हैं इसके बारे में पढ़ा, और नवजात शिशु का मसाज याने अभ्यंग कैसे कर सकते हैं इस के बारे में भी पढ़ा। इस अंक में जानकारी लेंगे कि हम नवजात शिशु को स्नान कैसे कराएं।
शिशु का स्नान और उबटनः
जन्म के पश्चात पांच-छह घंटों के बाद नवजात शिशु को अवश्य स्नान कराना चाहिए। स्नान के बारे में जब हम सोचते हैं तो सर्व प्रथम हमारे दिलो-दिमाग में यही सवाल आता है कि हम स्नान के लिए कैसा पानी इस्तेमाल करें? ऋतु के अनुसार गुनगुना या गरम पानी स्नान कराने के लिए लेना चाहिए। स्नान कराने का पानी बहुत ज्यादा गर्म या बहुत ज्यादा ठंडा नहीं होना चाहिए। स्नान कराते समय बालक को ठंडी हवा ना लगे इसकी सावधानी रखनी चाहिए। शिशु की त्वचा नाजुक और बहुत संवेदनशील होती है इसलिए साबुन की जगह, उबटन लगाना ज्यादा लाभकारी होता है।
शिशु के लिए उबटन कैसे बनाएं?
चंदन, सारीवा, हल्दी, बेसन और मसूर की दाल, सम प्रमाण में लेकर, इन सब की पाउडर या चूर्ण कपड़े से छानकर उसका मिश्रण बना लें।
स्नान के समय यह उबटन चूर्ण, दूध या दूध की साय के साथ मिलाकर बच्चे के शरीर पर तेल लगाने के पश्चात लगाएं। अगर शिशु के शरीर पर बाल हो, तो यह उबटन चूर्ण दही के साथ मिलाकर लगाएं। शरीर पर इस चूर्ण का थोड़ा – सा मसाज करें। इससे त्वचा के ऊपर के छोटे रोम कूप खुल जाते हैं। त्वचा पर की डेड स्किन निकल जाती है और शरीर में हलकापन आ जाता है। उबटन लगाने के पश्चात गुनगुने पानी से फिर से शिशु को नहलाना चाहिए। इसके बाद जल्दी से शिशु को मुलायम सूती वस्त्र में लपेट कर एक रूम में ले जाना चाहिए।
शिशु के लिए धूपन कर्म-
स्नान कराने के पश्चात बालक को धूप देना चाहिए। धूप तैयार करने के लिए हमें सूखे हुए गोबर या कोयले की जरूरत होगी। यह कोयला या गोबर हमें स्नान कराने से कुछ समय पहले ही किसी सुरक्षित स्थान पर जला देना चाहिए। स्नान होने के बाद इस कोयले से आग बुझ जाएगी और उस में से धुआं निकलना शुरू हो जाएगा। उसके ऊपर अजवायन, धनिया, सोया आदि औषधियां एक-एक चम्मच डालें, फिर यह धूप में अच्छी तरह से फैले इसलिए ऊपर से एक उलटी छलनी रख दें। इसके ऊपर बालक को कुछ अंतर रखकर थोड़ा सा सेके। बालक को इस तरह पकड़ेंकि उसे यह धूप तो लगे लेकिन जलती सामाग्री का चटका न लगे। शिशु के शिर, कान, नाक, गुदा, मूत्र मार्ग, इन सब जगह पर अच्छी तरह इस धूप मिलना चाहिए। इस तरह शिशु को रोज धूप देने से सब प्रकार के इन्फेक्शन का निवारण होता है। बालकों में जो बुखार, सर्दी, जुकाम, खांसी आदि लक्षण दिखाई देते हैं वह भी नियमित धूपन करने से कम हो जाते हैं। नियमित सेंक-धूप लेने से बालक का पोषण अच्छी तरह होता है। उसे भूख अच्छी तरह लगती है, और शरीर का विकास, शारिरिक वृद्धि अच्छी तरह होती है।
बालक की माता को भी नियमित रूप से कम से कम 3 महीने तक अभ्यंग और धूपन लेना चाहिए। ये दोनों ही माता की सेहत के लिए अच्छे होते हैं। शिशु को जन्म के बाद नियमित 6 से 8 महीने तक धूप देना चाहिए, उसके बाद जब शिशु बड़ा हो जाता है तो उसे हाथ में उठाने मेँ थोड़ी तकलीफ होती है, तब हम शिशु के रूम में सुरक्षित स्थान पर एक कोने में धूप जलाकर सकते हैं।
बालक के शरीर के ऊपर उगे अनचाहे बाल निकालने के लिए क्या करें?
धूपन के बाद बालक की छाती पर चुटकी भर वेखंड पाउडर (वच) लगाएं। पीठ के ऊपर, जंघा में, पेट के ऊपर, कपड़े से छाना हुआ चूर्ण लगाने बाद उसे कपड़े पहना दें। बालक के शरीर के ऊपर के अनचाहे बाल हटाने के लिए हल्दी, वेखंड चूर्ण और सरसों का तेल, या फिर गेहूं का आटा और दही मिलाकर लगा सकते हैं। यह रोज करने से धीरे-धीरे बाल झड़ते हैं। अगर शिशु लड़की हो तो भविष्य में पार्लर जाने की जरूरत भी इस से कम हो सकती है। इस तरह हमें शास्त्रोक्त रीति से बालक को स्नान कराना चाहिए और धूप भी देना चाहिए। प्रतिदिन ऐसा करने से बालक का शारीरिक विकास अच्छी तरह से होता है।
क्रमशः आगे के अंको मे पढते रहे ‘नवजात शिशु की देखभाल’