शास्त्र शुद्ध पद्धती के अनुसार मसाज करने से शिशु को बहुत फायदा हो जाता है। पर मसाज का मतलब सिर्फ तेल लगाना ऐसा नहीं होता। शिशु से एकरूप होकर उसे स्पर्श के माध्यम से संवाद करना ही सही मायने में मसाज होता है। नियमित रूप से मसाज करने से शरीर में रक्त का संचलन, श्वसन संस्था, पचनसंस्था अच्छी तरह से कार्यक्षम हो जाते है।
मसाज की वजह से शिशू में रोग प्रतिकारक शक्ती यानी की इम्मूनिटी बढाने वाली पेशियों की संख्या बढ़ जाती है और शरीर से स्ट्रेस का लेव्हल कम हो जाता है।
मसाज करने से शिशू को अच्छी नींद लगती है, वजन बढ़ जाता है एवं तेल की वजह से त्वचा का पोषण बढ़ जाता हैा स्नायू में ताकत आ जाती है।
मसाज के लिये तेल?
सबसे ज्यादा पूछे जाने वाले सवाल यही होता है कि मसाज के लिए कौनसा तेल इस्तमाल करें?
शिशु के मसाज के लिए पहले तेल को निर्जंतुक करें, इसके लिये उबल ने तक तेल को गरम करे, फिर ठंडा होने के बाद एक बोतल में रख के रोज इस्तेमाल करें।
तेल का मसाज रात मे करने से ज्यादा फायदा मिलता है। उसे दुसरे दिन नहाते वक्त तेल निकल जाता है।
कोई भी नया तेल इस्तमाल करने से पहले उसे पहले हाथ पर लगाये। दुसरे दिन तक अगर कोई भी ऐलर्जिक स्थिती न दिखे, तो ही उस तेल को सुरक्षित समझकर उसका इस्तेमाल करना शुरू करें, अन्यथा न करें।
बच्चों के लिए औषधियों से सिद्ध अभ्यंग तेल अच्छा होता है। सुबह स्नान से पहले पूरे शरीर को हल्के हाथ से तेल लगाएं। तेल लगाते वक्त बहुत जोर से या ज्यादा प्रेशर देने से बच्चों को परेशानी हो सकती है। बच्चों के साथ खेलते खेलते धीरे-धीरे और बहुत प्यार से तेल जब लगाते हैं तब बच्चों को भी तेल लगाकर मालिश करना अच्छा लगता है।
सामान्यता मसाज करने वाले व्यक्ति बच्चों को खुद के पैरों के ऊपर लेटा कर तेल लगाते हैं, तो बहुत आसानी से मसाज होता है, लेकिन अगर यह मुमकिन नहीं है तो उसे मुलायम कपड़ों के ऊपर रखकर तेल लगाया तो भी चल जाएगा।
शिशु को मसाज कैसे करें?
सबसे पहले शिशु के सिर के ऊपर गुनगुना तेल लगाएं। इससे तेल अच्छी तरह से अंदर तक शोषण होकर शिशु के बुद्धि का विकास होता है। नाभि में दो या तीन बूंद तेल डालें। बारिश के दिनों को छोड़कर, २-३ बूंद कान में डालनी चाहिए। आयुर्वेद में कान में तेल डालने की इस प्रक्रिया को ‘कर्ण- पुरण‘ कहा गया है और यह सभी प्रकार के कान के विकारों में बहुत ही उपयोगी है। सिर्फ हमें सब जगह पर गुनगुना तेल इस्तेमाल करना चाहिए। जीस से बच्चे की सुनने की शक्ति यानी की श्रवण- शक्ति (श्रवणेंद्रिय) का विकास होता है।
उसके बाद तेल लगाने की शुरुआत पैरों से करें और तेल लगाते वक्त पैरों के तलवे से जांघो की ओर, हाथ के तलवे से गर्दन की ओर ऐसी दिशा में मसाज करना चाहिए। मतलब, नीचे से ऊपर की ओर या फिर ‘ह्रदय‘ कि ओर हमें हाथ से मसाज करना चाहिए।
पीठ पर भी नीचे से ऊपर की ओर और पेट पर घड़ी की दिशा जैसी गोल दिशा में हाथ फैलाते हुए (बपतबनसंत उवजपवद – बसवबाूपेम) तेल लगाएं। इससे बच्चे की पाचन-शक्ति बढ़ जाती है। तेल हम जैसे दिशा में मसाज करते हैं उस दिशा में अंदर की आंतों की रचना होती है और अंदर तक तेल पहुंच कर आंतों की ताकत और पाचन शक्ति बढ़ता है। कम से कम बारिश में और जाड़े के मौसम में तेल को गुनगुना करके ही इस्तेमाल करें। तेल लगाने के बाद शिशु को आधे घंटे के बाद स्नान कराएं। इस प्रकार नियमित अध्ययन करने से शिशु की हड्डियां और मांसपेशियां मजबूत होने में मदद होगी, त्वचा कोमल और सतेज हो जाएगी, एवं शरीर की बाढ़ अच्छी तरह से हो जाएगी।
इस तरह से शास्त्र सुविधा मसाज हर दिन करने से नींद भी अच्छी तरह से हो जाती है और रोग विरोधी प्रतिकार क्षमता बढ़ जाती है। खास कर शाम के वक्त फिर से एक बार तेल लगाने से नींद बहुत ही अच्छी आ जाती है।
वैसे देखा जाए तो बच्चों को पहले 2 साल हर रोज ‘अभ्यंग‘ मतलब मसाज करें, उसमें भी कम से कम पहले 8 या 9 महीने के लिए रोज अभ्यंग करना ही चाहिए। बाद में हो सके तो रोज या फिर कम से कम 5 साल तक हफ्ते में एक या दो बार अभ्यंग जरूर करें।