टीकू की मंमी! ईस बार दिपावली वेकेशन पर कहां जानां चाहती हो? अखबार पढते हुए परेशने अपनीं पत्नि से पुछा। यह सुनते ही टीकु बिच मैं ही बोल पडा ‘‘केरल‘‘!
टीकु का जवाब सुन कर टीकु की मंमी ने भी हामी भर दी
जैसे ही छुट्टियों का समय नजदीक आता है, तभि हर किसीके घर परिवार मैं कुछ ईसी तर्हा की चर्चाएं शुरू हो जाती है, जब-जब छुट्टियां नजदीक आने लगे वैसे उत्साह और बढने लगता है।
जब तक हम यह सोचते हैं कि क्या-क्या देखने जाएंगै? कोनसे प्रदेश का कौनसा भोजन अनोखा है? कौनसे प्रदेश के रीति-रीवाज, मौसम, त्यौहार अनुसार खान-पान पहनावा अच्छा है? कहां कौन सी सवारी पर हम टहेल सकते है? और तब तक तो टीकट की बुकिंग भी हो चूकी होती है, जो सभि के मन मैं एक नया उत्साह और जोश भर देता है। जादा तर लोग इस तरह की छुट्टि यों पर ही घुमनै की योजनाएँ बनाते है, वैसे तो हर अलग-अलग जगह पर घुमने का अपनां एक रीति रीवझ होता है।
वैसे तो हमारा दैनिक जीवन बहोत व्यस्त रहेता है, पर उस मैं कई छोटी-मोटी छुट्टिया आती ही रहती है, उस मैं भी जब ईतवार हो तब तो परिवार ओर मित्रों के साथ स्पैश्यल डे मनां ने का ही मन करता है, यहां तक कि केलैंन्डर मैं लाल रंगकी कौनसी तारीखे है? और तभी सह परिवार या सभि मित्रों कहां जाकर घुमैंगे और कहा का भोजन या फास्ट फूड की क्या स्पेस्यालिटी है, ओर सभी के साथ मिलकर कूछ फास्ट फूड चटपटा खान-पान ही हम पसंद करते है, जो की दुर्भाग्यवस बहोत ज्यादा खान-पीन हो जाता है। जीसमे ओवर ट्रावेल और शारीरिकश्रम को भी हम नजर अंदाझ कर लेते है, जो हमारी सेहत के लिए अच्छा नहीं होता है ओर हमे बीमार भी कर सकता है।
आप सोच रहे होंगे की तो क्या हम बाहर का खाना, घूमना सब बंद करदे ओर छुट्टियांे का मजा ना ले? जी नहीं, यह सब भी जरूरी है जीवन में, लेकिन आपकी खुशी के साथ स्वस्थ जीवन के लिये थोड़ी सावधानी और आयुर्वेद के साथ त्योहारों का आनंद ले सकते है, चाहे आप घूमने के लिए बाहर जा रहे हो या घर पे ही रहे, आप ऊर्जावान रहे ओर त्योहारों के इस मौसम मे आप स्वस्थ रह सकते है और हमारी छुट्टियो का आनंद भी बरकरार रहता है।
स्वस्थ पाचन को महत्व दीजिए
त्योहरों के दिनों मे थोडा ज्यादा बाहरी चटपटा खानां तो आम बात है, जिनकी वजह से शरीर मैं मंदाग्नि के साथ साथ टोक्सिन्स (फ्रि रेडीकल्स) से पाचन बढता है। जैसे कि त्यौहारो के दरम्यान बने हुए तैलीय खान-पान और मीठाईयां प्रकृति द्वारा पाचन मैं भारी होती है, मंदाग्नि मैं लिये जाने वाले ऐसे खाध्य पदार्थ आपकी सेहत को ओर भी खराब कर देते है।
यह भी एक और संयम नियम अपनाएंः
जैसे कि भुख के बीनां खानां नहीं चाहीए, जब एकबार भोजन हो जाए बाद फीर तुरंत खानां नहीं चाहीए, बहोत ज्यादा भोजन करना भी हितवाह नहीं है। इस सबसे बच ने का आसान सा तरीका है, ताजा गरम स्वादिस्ट खाद्य पदार्थ ही खाने चाहिए जो आपके पेट को स्वस्थ रखते है। जैसा मौसम हो उसके अनुकुल ही भोजन पकाया जाता है और गर्म-ताजा भोजन ही खाना चाहिए। जैसे की ताजे फलों और घरका बना पौष्टिक सुप, यह सब इस ठंडे मौसम मे सबसे अच्छा भोजन साबित हो सकता है।
लाल मिचर्ः बलगम के साथ शरीर से अनावश्यक अवशिष्ट को दुर करने मैं मदद करता है, और साथ ही शरीरकी अंतिम कोशीकाओ तक रक्त पहुचाकर सामान्य रक्त परिसंचरण करता है।
हल्दीः चिकनाई दुर करके रक्त को शुद्ध करती है और सूजन का मिटाने मैं मदद करती है, गैस को मिटाने भी लाभदायक है, साथ ही माता को स्तन पान में शक्ति प्रदान करती है।
लहसुनः रक्त शुद्ध करके कोलैस्ट्रोल को कम करने मैं मदद करता है, साथ ही हृदय को भी मजबूत बनाता है।
‘‘कोल्ड चिजों को कहें बाय-बाय और गर्म ताजा भोजन को करे वैलकम’’
‘‘भोजन मैं दुष्कर वारी’’ का अर्थ यह होता है कि भोजन के तुरंत बाद पिया हुआ पानी जहर के समान काम करता है। जैसे हम भोजन करते है तभी उदर मे अनाज को पाचन करने हेतु एक अग्नि उत्पन्न होती है जो अग्नि समान उर्जा होती है और वह गर्म रहती है, जब हम भोजन बाद तुरंत उपर ठंडा पानी पी लेते है तब वह उर्जा ईसी तर्हा ठंडी हो जाती है, जैसे जलते अंगार पर जल छीडकनां, और ईसी वजह पाचन की मंद क्रीया की वजह से कच्चा आम उत्पन्न होकर अनाज पाचन नहीं हो पाने की वजह से गैस बनती है, और साथ ही कई तरहा की बीमारीयां उत्पन्न होती है, ईसी वजह भोजन बाद पानी कभि नहीं पीये, जब की आधे भोजन के मध्यांतरमें पिया गया पानी का एक या दो घूंट अमृत समान कार्य करता है।
जैसे कि मल-मूत्रः
शरीर मैं मंदाग्नि होने के कारण आंतो मैं जमे हुए अर्ध पके भोजनको बाहर नहीं निकालता, जिसके कारण मल-बंधन यानि कब्ज होती है, और जब मल आंतो मैं लंबे समय तक जमा पडा रहता है तब जैसे कुडेदानमे वासी कुडा सड कर गैस उत्पन करता है, उसी तरह यह अर्ध-पका भोजन हमारे शरीरमें सडता है और गैस उत्पन्न करता है। हम सब जानते है, आज के दौरमें गैस, एसिडिटी, अजिर्ण, अपच, जैसी समस्या आम बात है। जिस की जडे मंदग्नी है। अब ऐसा न हो ईसी लिये हमें मंदाग्नि न हो उसी से बचकर रहनां है वही हमारे स्वास्थ्य के लिए अति उत्तम लाभकारी है।
कभि भी हम अपनां नियम या नित्यक्रम नहीं छोडेः
“जहां ‘‘नियम‘‘ है वहाँ ‘‘यम‘‘ नहीं है” हमनै यह अक्सर सुना तो जरुर है, मगर बहौत कम लोगों के पास इसका अनुभव है। जैसे की किशोरा वस्था मैं आज की युवा पीढी कुछ ऐसी ही जिंदगी जी रहे है, जिन के जिवन मै नियम पालन की कोई दिर्ग द्रष्टि ही नही है, जिसके फलस्वरुप आज की लापरवाह पीढी तनाव-अवसाद-चिंता भरी जिंदगी जीते है।
एक अराजक जीवनशैली शायद उतना बडा योगदान नही देती, जितनी चिंता पैदा करने से होता है। हर सुबह एक नीयीमत समय उठो और निस्चित समय पर सो जाओ। दिन के कुछ खास समय पर भोजन करने के साथ-साथ दिनमें चलने, योग, प्रणायाम के लिए समय निर्धारित करना आवश्याक है। कम से कम सात से आठ घंटे की पुर्ण निंद और थोडी हल्कि सी व्यायाम या खुल्लि छत/ जगह पर सूर्य नमस्कार विगेरे सब यह त्योहारके मौसम के दौरन आपकी सेहत को संतुलित रखेगी। और यही है आपकी रुटीन, नियम, संयम भरी जीवन शैली।
प्राणायाम और योगः
यदी प्रणायाम और योग शांत चित्तसे कीया जाए और अपनी श्वशन क्रिया पर ध्यान केन्द्रित कीया जाये तो, हर एक प्रकार के योग और प्राणायाम से मन और शरीर को शांति और उर्जा प्राप्त होती है। जैसे कि सर्वांगासन, हलासन, गौमुखासन, शवासन, पद्मासन, सलभासन, और सिंहासन पंचम जेसे यह सभी आसन से शरीर को तनाव से राहत मिलती हे। प्रणायाम हर किसीके लीये अलग तरीके से होता है, ५ मिनट का शबासन, १० मिनट की योग निंद्रा ले यातो गहरी सांस लेने के लिये हर दिन नत मस्तक हो। आप जो भी करना चाह्ते हैं किजिए, मगर वर्तमान मैं रहने की कोशिश करें, श्वासों-श्वास की प्रक्रिया के साथ-साथ अपने शरीर पर भी जरुर ध्यान देवै।
अभ्यंगः
गर्म तिल्लि का तेल या बादाम का गर्म तेल, हफ्ते मैं तिन से चार बार मालिश करैं और गर्म तोलिया लपेट कर कूछ देर के लिये बैठे, कम से कम १५ मिनट तक आराम करैं, और अपनीं सांसो पर ध्यान दें। गर्म तेलसे कि गई मालिश से आपके शरीर मैं उर्जाका नया संचार होगा, और आपको रातकी अच्छि निंद लेने में मदद मिलेगी।
हर्बल चायः
रसायणों ओर विभिन्न हर्ब से घर पर बनाई गई हर्बल चाय से आपके शरीर की हर कोशीकाओं को नया जिवन प्रदान करेगी। ब्राह्मि, पिप्पलि (लिंडी पिपर), अश्वगंधा, जेठीमध, जैसे पदार्थ प्रभावी रहता है, इस मौसम मै सबसे महत्व पूर्ण बात है, यह जडी बुटीयां पाचन तंत्र को मजबूत बनाता है और मलको हटाने मैं मदद करता है। हर सुबह ऐसे पदार्थ से बनी चाय आपको सांसकी बीमारीयों से भी बचाएगी।
ज्योत से ज्योत जलेः
दिपोत्सवी-दीपावली यानीं भगवान श्री रामचंद्रजीके १४ वर्ष वनवास कै दिनों की पूर्णता, और अयोध्या आगमन पर राज्यभीषेक हुआ, जिसकी खूशीमैं पूरी अयोध्या नगरी मैं दीप प्रागट्य एवं हर्षोत्सव मनाया जाता है। इसी बात से तो सभी परीचित हे। अब हम भी उस दिनको दीपकों से सजाकर मनाते हैं। आप जानते हो, क्यों? एक अनुसंधान के मुताबिक, जहां हर दिन दीपक जलाया जाता है वहां का वातावरण सकारत्मकता से भरा हुआ होता है। जब हम प्रतिदिन दीपक जलातें है तब हमारे दैनिक जीवनमें बहुत सी सकारात्मकताभरी चीजें होती है लेकिन हमें प्रत्यक्षरुप से मह्सुस नही होती है। इसका कारण है “गाय का घी”। वेदों मैं गाय के घी को अज्य कहा जाता है, देशी गाय के घी से अग्नि प्रज्वलित करने से सकारात्मक ऊर्जाका संचार होता है, जो पृथ्वी के साथ-साथ अंतरिक्ष में भी वायु प्रदूषण के रूप में राक्षसों का संहार करता है।
अग्निहोत्र में एक चम्मच देशी गायके घी को जलाने से एक टन ऑक्सीजन हवा में निकलती है साथ ही एसिटिलीन नामक तत्व निकलता है जो वातावरण में विषाक्त पदार्थों को आकर्षित करता है और उन्हें नष्ट कर देता है।
गाय के घी को जलाने से एथिलीन, प्रोपलीन, फॉर्मलडिहाइड, बीटा-प्रोपियोलैक्टेन आदि गैसें भी निकलती हैं जिनमें कई प्रकार के वायु प्रदूषण करने वाले कीटाणुओं को नष्ट करने, थकान और तनाव को दूर करने की अद्भुत क्षमता होती है।
रुसी वैज्ञानिक शिरोविश के अनुसार “देसी गाय के घी के अग्नि संपर्क से उत्पन्न धुआं आणविक-विकिरण प्रभाव को काफी हद तक दूर करता है।“
“इस लिये इस दिपावली पर हर व्यक्ति अपने घर मैं देशी गाय के घी से ही दिपक जलाकर भगवान श्री रामजी का दीप प्रागट्य से स्वागत करें।“
थोडा पास जाओ – थोडा भुल जाओः
हर तरह के नकारात्मक सोच, विचारो और अनुभवों को याद रखनां मानव सहज स्वभाव है, जैसे कि पहले साल हुए त्योहार मैं कोई ऐसी घटनां घटी है कि जिस हम कभि भुल नहीं पाते। ऐसे ही कुछ अच्छी स्मृति हो या ऐसी ही कोई दुखद घटनां हो, तब उसी समय पर वही घटनां या स्मृति, को याद कर के दुखी होते है। अब ऐसा ना हो ईसीलिये आप ऐसे समय मैं अपने आप उस दुर्घटनां कि नेगेटीवीटी को दूर कर, अपनीं ताकत को प्यार व सज्जनता को सद्भावनां मैं उत्पन्न कर उस घटनां को भुल ने की कोशिश करैं। ह