जीवन के रहस्यों को जानने के लिए प्राणों को पुष्ट किया जाता है। सवाल हो सकता है कि प्राण पुष्ट कैसे हो सकता है? प्राण को जानने के लिए यदि हम पहले उसके आधार को समझें तो ही हम आगे समझ सकते हैं। शरीर को चलाने के लिए उसमें रक्तसंचार सुचारू रुप से हो तब ही शरीर स्वस्थ रह सकता हैं। रक्तसंचार सही करने के लिए शरीर के सभी अंगों का व्यायाम जरुरी है। व्यायाम कोई भारी भरकम कसरत नहीं है।
कसरत से शरीर मजबूत और कड़क हो सकता है|लेकिन कसरत स्वस्थ व्यक्ति ही कर सकता है। लेकिन यौगिक क्रिया एक ऐसा अनुक्रम है, जिसमें सभी अंगों की कसरत हो जाती है और रक्तसंचार भी सुचारू रुप से होता है और इम्यून सिस्टम को भी बलवान होने में ताकत मिलती है| मस्तक से लेकर पैरों तक की कुल 13 यौगिक क्रिया है| एक एक अंग की 4-5 या उससे भी अधिक क्रिया है और इसमें ज्यादा समय भी नहीं लगता| ज्यादा से ज्यादा 30 मिनट में पूरे शरीर की यौगिक क्रिया हो जाती है। जिन्हें सूक्ष्म क्रिया भी कहें तो अतिशयोक्ति नहीं होगी।
मानसिक, शारीरिक स्फूर्ति बनी रहती है। उसके साथ यदि हम प्राणायाम करें तो हमारे शारीरिक दुर्बलताओं से हमें छुटकारा मिल सकता है। वैसे तो शरीर में कईं नाडिया है, जिनमें प्राण-प्रवाह होता है। लेकिन तीन नाडियों को योग्य दर्शन में साधकों ने महत्वपूर्ण स्थान दिया है। इडा [चंद स्वर], पिंगला [सूर्य स्वर] सुषुम्ना, जब प्राण का प्रवाह सुषुम्ना में होता है तब मन शांत-निर्विचार हो जाता है, और संकल्प शक्ति भी बढ़ती है।इच्छा शक्ति मजबूत बनतीं है. स्वभाव परिवर्तन होता है। ये केसे संभव है? सवाल हो सकता है, जब अनुलोम-विलोम, उज्जयी प्राणायाम का लम्बे समय तक अभ्यास करते हैं रोजाना 15 मिनट तो संभवत करना ही चाहिए ताकि उनसे भीतर के आवेश, आवेग, क्रोध शांत होता है और भीतर में शांति निवास करती है।
आज जो कोरोना का संक्रमण दौर चल पड़ा है, उसमें घबराने की आवश्यकता नहीं है। बल्कि उससे सामना करने के लिए हमारे भीतरी तंत्र को मजबूत करने की जरूरत है।
फेफड़े हमारे शरीर का महत्वपूर्ण हिस्सा है। फेफड़ों के द्वारा ही रक्त शोधन होता है। हमारे फेफड़ों की क्षमता ओक्सिजन लेने की 4/5 लीटर होती है लेकिन हम सिर्फ 1 या ½ लीटर ही ऑक्सिजन ग्रहण कर पाते हैं। कम ऑक्सिजन लेने से शरीर के कई कोशिकाओं को रक्त व ऑक्सिजन नहीं मिलता जिसके कारण कोशिका बीमार और कमजोर होक टूट जाती है।इसके लिए सबसे ज्यादा जरूरी है कि फेफड़े मजबूत हो, उन्हें फुलने या सिकुड़ने का पुरा मोका मिले। अर्थात जितना लम्बा श्वास लेंगे, ओर छोड़ेंगे उतनें ही फेफड़ों की क्षमता बढेगी।
अनुलोम–विलोम प्राणायाम
दाएं नाक से सांस लें कुछ देर रुकें फिर बाएं से छोड़ें, बाएं से लें रुके, फिर दाएं से छोड़े। दिन में तीन बार 10-10 मिनट करे।
कपालभाति
चित्त को नाभि पर केंद्रित करना है, फिर सांस छोड़नी है। ध्यान सिर्फ छोड़ने में लगाना है, लेने का कार्य स्वयं ही हो जाता है। 1 मिनट में 60 बार, फिर धीरे धीरे अवधि बढाएं। उस समय आपका चहेरा शांत रहना चाहिए।
दिन में 5 मिनट से 10 मिनट तक करे और इसके साथ आप दिन में तीन बार स्टीम भी ले सकते हैं। दिन में तीन बार गरम पानी, नींबू डाल कर प्रयोग करे तो इम्यून सिस्टम स्ट्रोंग बनता है और कोई भी संक्रमण भीतर प्रवेश नहीं कर सकता।
बच्चे, बड़े या बुजुर्ग कोई भी इन योगासनों को आसानी से कर सकता है। बुजुर्ग अगर बेठ कर नहीं कर पाते हैं तो वे लेट कर भी अनुलोम-विलोम कर सकते हैं।
जब प्राण मजबूत होंगे तो शरीर मजबूत होगा ।भीतर के सारे तंत्र मजबूत होंगे।जिससे आप बाहरी संक्रमण से लड़ सकते हैं। इससे किसी को नुकसान नहीं होता है, बल्कि भीतर की ग्रंथियाँ मजबूत होती है। मजबूत ग्रंथियां मन मष्तिष्क को आनंद से भर देती है।