आधुनिक विश्व में जहाँ लोग कई तरह की नई-नई बीमारियों से आक्रान्त हो रहे हैं, वहाँ बालो का झड़ना बहुत ही आम बात है, लोगो को ऐसा लगता है कि ये कोई बीमारी कैसे हो सकती है। खान-पान में समस्या, दिनचर्या, मौसम में बदलाव होने से बाल तो झड़ते ही हैं, लेकिन क्या आप जानते है कि ये एक गंभीर बीमारी भी हो सकती है? आइये जानते है ”ऐलोपेसिया“ के बारे में।
अगर आपके बाल गुच्छों में झड़ ते हैं जिससे आपकी हेयर लाइन ऊंची होने लगती है, कभी-कभी सिर के साथ-साथ षरीर के अन्य हिस्से के बाल भी गिरने लगें तथा सिर पर पैच (गोल चकत्ते) दिखायी देने लगें तो इस बीमारी को ऐलोपेसिया (गंजापन) कहा जाता है।
आधुनिक चिकित्सको एवं त्वचा रोग विषेशज्ञों ने इसे ओटो-इम्यून (Auto & Immune) रोग माना है। कई बार महिलाओं में प्रेगनेंसी के समय भी यह दिक्कत षुरू हो जाती है – जो बाद में ठीक भी हो जाती है कई बार लंबे समय तक तनावग्रस्त होने पर भी यह समस्या हो सकती है। दवाइयों के साइड इफेक्ट के कारण भी ऐलोपेसिया हो सकता है।
आयुर्वेद में इस बीमारी को इन्द्र लुप्त कहा जाता हे। रोमकूपों मे रहने वाला पित्त, वात के साथ मिलकर जब विकृत या दूशित होता है तो उस स्थान के केष झड़ जाते है फिर दूशित रक्त-मिश्रित कफ उस स्थान के रोमकूपों के मार्ग को अवरुद्ध कर देता और नवीन केष उत्पन्न नहीं हो पाते।
यह बीमारी पुरुशों एवं महिलाओ दोनों में देखी जा सकती है। प्रायः प्रारम्भ में पुरुशों में किनारे एवं सामने की ओर से बाल झडते हे। महिलाओं के बाल, सिर के बीच से झड़ना प्रारंभ होते हैं। इस बीमारी का असर मन पर भी प्रायः देखा जाता है क्योंकि यह समस्या बाहरी सौंदर्य से भी जुड़ी हुई है। खासकर कि महिलाओं पर इस बीमारी का गहरा प्रभाव देखने को मिलता हे। इसके कारण वे प्रायः चिंता एवं अवसाद से ग्रसित हो जाती हैं। जिसके कारण दोश और अधिक प्रकुपित होते हैं तथा समस्या और बढ़ जाती है।
आधुनिक चिकित्सा पद्धति में भी ऐलोपेसिया का कोई स्थायी समाधान नहीं है, इसलिये ऐसे उपाय किए जाते हैं कि बाल कम झडें। आयुर्वेदिक चिकित्सा से ऐलोपेसिया प्रायषः ठीक किया जा सकता है साथ ही नयी केष उत्पत्ति भी देखी जा सकती है। यह आयुर्वेद चिकित्सा के चमत्कार ही हैं। एक 42 वर्शीय महिला रोगी मेरे समक्ष उपचार हेतु आई जो ऐलोपेसिया बीमारी से पीड़ित थी। उसके बाल गुच्छे मे झड़ने से सिर में पैच बन गया था। इस बात का उस पर गहरा असर था। वह अत्यंत तनाव ग्रस्त, अवसाद युक्त एवं चिड़ चिडे स्वभाव की हो गयी थी, जिसके कारण उसकी चिकित्सा जटिल बन गई थी।
सर्वप्रथम मैने उसको चिकित्सीय औशधि परामर्ष के साथ-साथ मानसिक रूप से भी प्रबल रहने को कहा। प्रकृति परीक्षण पर मैंने पाया कि वह पित्त कफज प्रकृति की महिला है तथा उसकी दिनचर्या में भी बहुत हद तक वात व पित्त प्रकोपक षामिल हैं। जब मैने सिर का परीक्षण किया तो पाया कि कभी कभी उस चकत्ते में खुज ली भी हो जाती थी।
उपचारः
रोगी को सर्वप्रथम निम्न औशधियाँ दी गईं आभ्यंतर औशधियाँ
दिव्य आमलकी रसायन 100 ग्राम
काले तिल का चूर्ण 100 ग्राम
भृंगराज चूर्ण 50 ग्राम
दिव्य सप्तामृत लौह 20 ग्राम
दिव्य धात्री लौह 10 ग्राम
दिव्य मुक्ता षुक्ति 10 ग्राम
उपरोक्त सभी औशधियों को मिलाकर 60 पुड़िया बनाकर 1 पुड़िया सुबह षाम खाने के लगभग 20 मिनट पहले जल के साथ लेने का निर्देष दिया गया।
दिव्य फाइटर वटी
न्यूट्रेला नेचुरल बोन हेल्थ
न्यूट्रेला डेली एक्टिव कैप्सूल
बाह्य औशधियाँ
हर्बल हेयर एक्सपर्ट ओइल हफ्ते मे दो बार रात मे सिर मे लगाकर सुबह धोने का निर्देष दिया गया। उपरोक्त औशधियों के अलावा पित्त दोश के निर्हरण के लिए मैंने जलौकावचारण चिकित्सा का उपयोग किया चूंकि इस बीमारी में त्रिदोश के साथ-साथ रक्त धातु की विकृति होती है। पित्तदूशित रक्त को षरीर से बाहर निकालने के लिये जलौकावचारण चिकित्सा अत्यंत की लाभदायक है इसलिये औशधियों के साथ समय – समय पर जलौकावचारण करना जरूरी था।
आयुर्वेदिक चिकित्सा, पथ्य पालन एवं योगाभ्यास के बिना अधूरी है – चूंकि रुग्ण महिला के खानपान में विरुद्ध आहार एवं पित्त प्रकोप करनेवाले आहार अधिक थे, इसलिये सर्वप्रथम आहार में कुछ विषेश बदलाव किये गये, अनुलोम-विलोम, भ्रामरी जैसे आवष्यक प्राणायाम तथा सर्वांगासन आदि कुछ आसन उन्हे दैनिक रूप से करने की सलाह दी गयी।
खान-पान में बदलाव एवं व्यायाम करने से तथा नियमित औशधि सेवन से 3 महीने में फर्क दिखने लगा, उनके केष झड़ने कम हो गये थे तथा पैच वाले स्थान पर केष उत्पत्ति षुरू हो गई – जिससे उन्हें मानसिक बल मिला – उनका आयुर्वेदिक चिकित्सा के प्रति उत्साह बढ़ गया।
प्रकुपित दोशो के षांत होने तथा दूशित रक्त के निर्हरण से इस बीमारी मे कुछ ही महीनो में चमत्कारिक लाभ देखने को मिला द्यआधुनिक षास्त्र में जहां इस बीमारी का कोई स्थायी समाधान नहीं है वहीं आयुर्वेदिक चिकित्सा, पथ्यपालन एवं योगाभ्यास से इस जटिल बीमारी को ठीक किया जा सकता ह। विगत कुछ वर्शों के मेरे अपने अनुभव से यह मैं स्पश्ट रूप से कह सकता हूँ कि किसी भी बीमारी की आयुर्वेदिक चिकित्सा यदि दोश, दूश्य, प्रकृति, स्रोतोदुश्टि आदि को ध्यान में रख कर की जाए तो वह चिकित्सा लाभप्रद रहती ही है।
विषेश टिप्पणीः दवा पंजीकृत आयुर्वेद चिकित्सक की सलाह अनुसार ही लेनी चाहिए।