आजकल का जीवन इतना गतिमान हो गया है कि लोगों को अपने शरीर की तरफ देखने को समय नहीं मिल रहा है।
इसका नतीजा यह हुआ है की बीमारियां बढ़ रही है; लोगों का खान-पान, रहन-सहन बदल गया – बीमारी बढ़ गई अलग-अलग बीमारियों में ज्यादा नजर आने वाली और ठीक होने में बहुत कष्ट देने वाली बीमारी है यह सोरायसिस। 22 देशों में इसका अभ्यास किया गया जिसमे यह पता लगा कि 30 से 40 उम्र में और 60 से 70 की उम्र में इसकी शुरुआत होती है। संपूर्ण दुनिया में 6 करोड़ से ज्यादा लोग सोरायसिस से प्रभावित है। इससे ज्यादा भी पेशेंट हो सकते हैं। युनायटेड किंग्डम की 2ः प्रजा सोरायसिस से पीड़ित है। 2014 में विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) ने इसे महत्वपूर्ण लेकिन छूने से दूसरे को नहीं होने वाली भयंकर बीमारी घोषित किया हैं।
त्वचा पर होने वाली बीमारी आगे बढ़कर संधियों में जाकर वहां बीमारी बढ़ा सकती है, यह ह्रदय की बीमारी या यकृत की बीमारी भी पैदा कर सकती है। इसलिए सोरायसिस को त्वचा से जुड़ी गंभीर बीमारी माना जाता है। इस बात का हमेशा ध्यान रहे की सोरायसिस ये संक्रामक बीमारी नहीं है। सोरायसिस के पेशन्ट को स्पर्श करने से यह बीमारी नहीं फैलती है।
एक 30 वर्ष की पुणे में रहने वाली स्त्री मरीज़ जो व्यवसाय से आईटी प्रोफेशनल थी, जीसकी प्रकृति पित्त कफ थी।
उसे 2 साल से पूरी दो हाथ दो पैर, पीठ और पेट के ऊपर त्वचा के विकार उत्पन्न हुये थे।
मैंने जब त्वचा का परीक्षण किया तब उसे उसमें बहुत आरक्तता मतलब लाल वर्ण की चकते आई थी, उस में खुजली बहुत ज्यादा प्रमाण में थी, उंगलियों में दर्द और सूजन भी थी।
उसने एक लक्षण और बताया कि धूप में जाने के बाद यह सभी लक्षण बढ़ जाते थे, साथ में सर का दर्द होना, प्यास ज्यादा लगना यह लक्षण भी थे। सर दर्द उल्टी होने के बाद कम हो जाता था। हमने जब पेट का परीक्षण किया तो उसमें कुछ नहीं पाया लेकिन उनको जो मल या शौच होती थी उसमें गर्मी महसूस होती थी।
इस महिला को पूर्व इतिहास मे मतलब यह बीमारी होने से पहले एक बार जॉन्डिस हुआ था और उनको हाइपर एसिडिटी थी। अम्ल पित्त की तकलीफ बहुत ही ज्यादा थी। उन्होंने कहा कि 4 महीनों तक सुबह-शाम अर्वाचीन शास्त्र की पित्त शामक चिकित्सा लेती थी।
हमने जब उनसे पूछा और हमने उनके त्वचाविकार के कारण ढूंढें, उसमें यह पाया कि सुबह शाम एसिडिटी की दवाई लेना, प्रमाण से ज्यादा पानी पीना, बहुत तीखा खाना खाना, साथ में दही, दूध केला एकसाथ, मिल्क शेक ऐसे विरुद्ध आहार का सेवन किया था और शादी के बाद सतत 1 साल तक रोज रात को होटल में पनीर की सब्जी खाई थी। यहां पर एक ध्यान रखना है कोई भी चीज अगर एक बार खाते है तो वह बीमारी पैदा नहीं करती लेकिन अगर किसी चीज को हम बार बार खाते हैं तो वह बीमारी पैदा करती ही है।
उपचारः
इस रुग्ण को बार-बार वमन विरेचन और रक्तमोक्षण जैसे पंचकर्म किए गए साथ में कामदुधा दो गोली सुबह और दो गोली शाम दि गयी।
सप्तच्छदादी क्वाथ इनको सुबह और शाम हमने शुरू किया। बार-बार पंचकर्म करने के बाद जैसे-जैसे शारीरिक दोष कम होते गए, वैसे वैसे इनकी तकलीफ कम होती गई, परहेज में हमने नमक पूरा बंद कर दिया था और मूंग और मूंग की दाल ज्यादा से ज्यादा खाने के लिए दी थी। आज रुग्ण पूरी तरह से स्वस्थ है।
हमेशा त्वचा विकार पथ्य में तीखा, नमकीन, खट्टी चीजें फर्मेंटेड फूड इन सभी का त्याग करना चाहिए।
इस पेशन्ट की जो भी पहली बीमारी थी उस सभी बीमारीयाँ पित्त से होनेवाली बिमरिया थी। पित्त और रक्त को खराब करने वाले विकार थे।
हाइपर एसिडिटी दवा की वजह से वेग धारण, दही, पनीर, दूध, केला, मिल्क शेक जैसा आहार इससे खून और मांस की दुष्टी होना और उससे त्वचा विकार हो गये।
जहां पर खुजली होती है वहां से डेड स्किन का गिरना ज्यादा होता था जो कि हर सोरायसिस के मरीज़ में देखा जाता है। सफेद रंग की पाउडर गिरती है इससे रुग्णा बहुत परेशान थी सबसे पहले हमने उसका मनोबल बढ़ा दिया। उसके बाद उसका उपचार किया, उसमें सबसे पहले उसको शरीर शुद्धि की जो प्रक्रिया आयुर्वेद में बताई गई है वह सभी प्रक्रिया हमने उससे करवाई। शरीर शुद्धि के लिए आयुर्वेद में पंचकर्म की चिकित्सा की जाती है शरीर शुद्धि से जो फायदे होते हैं उसमें आचार्य स्पष्ट रूप से कहते हैं कि
एवं विशुद्धकोष्ठस्य कायाग्निरभिवर्धते।
व्याधयश्चोपशाम्यन्ति प्रकृतिश्चानुवर्तते।
इंद्रियाणि मनोबुद्धिवर्णश्चास्य प्रसीदति।।
बलपुष्टिरपत्यं च वृषता चास्य जायते।
जरा कृच्छेन लभते चिरं जीवत्यनामयः।।
इसका मतलब यह है शरीर शुद्धि से भूख बढ़ती है, जठराग्नि प्रदीप्त तो होता है और रोग ठीक हो जाते हैं। शरीर का बल बढ़ जाता है, नपुंसकता नष्ट होती हैं, मनुष्य को वृद्धत्व देर से आता है। इसलिए वैद्य के निगरानी में लोगों को पंचकर्म करवाना चाहिए। जिस शरीर में प्रमाण से बहुत अधिक दोष बढ जाते हैं, उनको बार-बार शरीरशुद्धि की प्रक्रिया करनी पड़ती है।
आयुर्वेद के अनुसार शरीर में वात पित्त कफ यह तीन दोष कार्यरत होते हैं। यह दोष शरीर में जब तक अच्छे स्वरूप में या नॉर्मल रूप में होते हैं तब तक यह शरीर की सभी प्रक्रिया को उत्तम तरीके से करते रहते हैं। लेकिन जब यह दोष जरूरत से ज्यादा या विकृत स्वरूप में बढ़ जाते हैं तब वह बीमारियां पैदा करते हैं। जब यह दोष त्वचा में आकर उसी स्थान पर बस जाते हैं, तब वो त्वचा मे विकार उत्पन्न करते हैं।
इसलिए सबसे पहले इन बढ़े हुए दोषों को शरीर के बाहर निकालने के लिए आयुर्वेद में शरीर शुद्धि की क्रिया बताई है। त्वचा विकार जब भी उत्पन्न होता है तब इस बात का ध्यान रहे कि दोष बहुत लंबा सफर करने के बाद त्वचा के ऊपर आ गए हैं। इसलिए कोई भी त्वचा विकार कि चिकित्सा करते समय इस बात का ध्यान रहना चाहिए कि इसके लिए ज्यादा दिन तक चिकित्सा करनी पड़ती है। लोग हमेशा समय का बहाना दे कर सिर्फ दवा खाते हैं लेकिन इससे बीमारी पूरी रूप से नष्ट नही होती। बिमारी पूर्ण तरह से नष्ट होने के लिए शरीर शुद्धि की क्रिया याने पंचकर्म उपचार करना जरूरी होता है, आचार्य कहते हैंः
दोषाः कदाचित कुप्यन्ति जिता लंघन पाचनैः।
जिताः संशोधनैर्ये तु न तेषां पुनरुद्भव।।
इसका मतलब लंघन पाचन या हम जो दवाइयाँ देते हैं उस दवाई से जो कम हुए दोष हैं वह दोष अगर उन्हें उनकी अनुकूल परिस्थिति मिल जाती है तो बढ़ सकते हैं लेकिन संशोधन याने शरीर शुद्धि की जो भी प्रक्रिया जिसे हम पंचकर्म कहते हैं वह अगर हमने करवाई है या उससे अगर शरीर के दोष निकल गए हैं तो वह पुनः कभी नहीं बढ़ते।
सोरायसिस के बारे में पिछले 22 वर्षों का जो अनुभव है उसके आधार पर मैं कुछ बातें यहां सामने रखना चाहता हूं और अर्वाचिन शास्त्र में इसका कोई इलाज आज तक उपलब्ध नहीं है। लेकिन अभी तक जितने मरीज़ की चिकित्सा की इससे एक बात ध्यान में आई है कि जितने भी मरीज़ देखे उसमेंः
- मरीज़ पूरी तरह से ठीक हो गए। आज तक उनको इस बीमारी के लक्षण उत्पन्न नहीं हुये।
- रोगियों को कड़ा परहेज करना पड़ता है, परहेज में थोड़ा भी बदल किया तो बीमारी वापस बढ़ती है।
- लोगों में यह बीमारी पूरी तरह से ठीक नहीं होती, पूरे शरीर से कम होकर किसी छोटी जगह पर यह बिमारी बची रहती है लेकिन मरीज़ पूरे शरीर से यह बीमारी कम होकर छोटी जगह पर रहने की वजह से भी खुश रहता है
- मानसिक तनाव इस बीमारी को बढ़ाने वाला सबसे बड़ा कारण है।
सभी लोगोको इस बात का ध्यान रखना चाहीये की कभी भी सेल्फ मेडिकेशन नही करना है याने डोक्टर की सलाह के बिना दवाईया नही खानी चाहीये।