घर में…
बेटा: मम्मी मेरा लंच बॉक्स तैयार है क्या?
मम्मी जल्दी करो, स्कूल बस आ जाएगी…
पतिदेव: अरे सुनती हो… मेरा तौलिया कहाँ रखा है?
सासु: बहू, मूझे गरम पानी दे दो।
अरे यह एक घर की बात नहीं है… सभी महिलाओं ने यह अनुभव किया ही होगा। हमारे देश के ज्यादातर घरों में रोज सुबह की शुरूआत एसे ही होती है।
”गृहिणी एक और काम अनेक“
फिर भी महिलाएँ अपना कर्तव्य समझकर यह सब काम खुशी खुशी करती है, परंतु उस गृहिणी के बारे में आपने कभी विचार किया है क्या?
ओफिस में:
सर: आप ने प्रोजेक्ट का काम पूर्ण कर दिया?
सहकर्मचारीः आज मेरा प्रेजेंटेशन कर देना, मेरी तबियत ठीक नहीं है।
चपरासी: मेडम, आज मुझे छुट्टी चाहिए… शादी में जाना है।
यह बात हुई working women… जो घर पर तो सब का ख्याल रखती ही है, पर अपने कार्य स्थल पर भी वह बड़ी जिम्मेवारी से अपना काम करती है।
परिवार और नौकरी- दोनों के बीच पीसकर रह गई आज की नारी। उसे अपने स्त्री होने का एहसास दिलाने के लिये साल में एक बार 8 मार्च के दिन woman’s day मनाना कितना उचित है!
भारत में महिलाओं की स्थिति में वैदिक युग से लेकर आधुनिक काल तक अनेक उतार चढ़ाव आये है। वैदिक काल में स्त्रियो का एक महत्वपूर्ण स्थान रहा है। नारी के संबंध में मनुस्मृति में कहा है “यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते रमन्ते तत्र देवता“। इस काल में स्त्री को एक देवी का दर्जा मिला था जैसे माता सीता, देवी अनसूया, देवी अरुंधती आदि।
मध्ययुगीन काल में स्त्रियों की स्थिति में बहुत गिरावट आयी थी। मुगल शासन, ब्रीटीश शासन आदि के समय में बाल विवाह, सती प्रथा, पर्दा प्रथा, बहुपत्नीत्व जैसे प्रचलित कुरिवाजो का सामना स्त्री को करना पड़ा। वहीं दूसरी ओर रानी लक्ष्मीबाई, रजिया सुल्तान, जीजाबाई, अहल्याबाई, लीलावती जैसी महिलाओं ने आवाज उठाकर अपने हक के लिये लड़ाई भी की और सफलता भी प्राप्त की थी।
बस, उस दिन से लेकर आज तक महिलाएँ अपने कठोर परीश्रम से वर्तमान समय में कहाँ नहीं पहुँची है…
जैसे स्पोर्ट्स के मैदान से अवकाश तक…
खेत से कॉर्पोरेट जगत तक…
आंगनवाड़ी कार्यकर से लेकर राष्ट्रपति तक… इसके अलावा विज्ञान, मेनेजमेंट, पॉलिटिक्स, डिफेन्स आदि जगह पर महिलाओं ने अपने अनन्य प्रयास द्वारा उच्च सिद्धियाँ प्राप्त की है। माननीया द्रोपदी मुर्मूजी, प्रतिभा पाटिल, इंदिरा गांधी, किरण मजमुदार, पी.वी. सिंधु, निर्मला सीतारामन, कल्पना चावला, सुधा मूर्ति, सानिया नेहवाल जैसी हजारों महिलाओं ने आज घर के साथ साथ देश के विकास में भी अपना महत्वपूर्ण योगदान दिया है।
परंतु, शायद इन सब के बीच में आज की नारी अपना स्वास्थ्य का ख्याल रखना भूल गई है…
कामकाजी महिलाओं का व्यस्त रहना स्वाभाविक है। घर और व्यावसायिक जीवन के बीच संतुलन रख कर चलते हुए महिला खुद के स्वास्थ्य पर ध्यान नहीं दे पाती। चाहे वह शारीरिक तकलीफ की बात हो या अपने पोषण की… working women शुरुआती तकलीफ जैसे कि शरदी-जुकाम, बुखार, कमरदर्द, शिरदर्द होना या अन्य कोई बीमारी को ‘अपने आप ठीक हो जाएगा’ ऐसा सोच कर नजर अंदाज करती है। फिर कुछ दिन घरेलू नुस्खे और आस पड़ोस से सलाह लेकर अपने आप चिकित्सा शुरू कर देती है, उसमें भी कुछ दिन दवाई खाना, कुछ दिन भूल जाना या दवाई खाने के लिए समय नहीं निकाल पाना ऐसा अकसर देखा जाता है। चिकित्सक के पास जाकर दिखाने में तो महीने निकल जाते हैं उसके लिये महिलाओं की कुछ आलस, कुछ व्यस्तता और कुछ लापरवाही कारणभूत है… लेकिन उससे व्याधि अपनी जड़े मजबूती से जमा लेती है और अपने उपद्रव भी शुरू कर देती हैं, इसीलिए महिलाओं को चाहिए कि वे अपने स्वास्थ्य के बारे में गंभीर रहे। छोटी से छोटी तकलीफ को सहन किए बिना उसका इलाज शुरू कर दें। महिलाओं को अपनी बीमारी का निदान खुद से ना करके उसके रोगविशेषज्ञ की सलाह लेनी चाहिए।
महिलाओं की ऐसी जीवन शैली के कारण उनमें पोषण का अभाव भी ज्यादातर देखने को मिलता है। उम्र के हिसाब से आयर्न, कैल्शियम, प्रोटीन आदि जरूरी होता है। महिला पोषण युक्त आहार नहीं लेती है और कचोरी – पकौड़ी जैसी बाजारु चीजे महिलाओं को लुभाती है। बच्चों के लिए पोषण युक्त नाश्ता – खाना बनाने में उसके हाथ नहीं थकते लेकिन अपने लिए कुछ नहीं बनाती है, अगर कोई स्वास्थ्यवर्धक व्यंजन बना भी लिया तो उसका नियमित रूप से खाना उसके लिए काफी मुश्किल होता है। उम्र की अलग-अलग अवस्था है जैसे बाल्यावस्था, किशोरी अवस्था, गर्भावस्था, सूतिकावस्था, रजस्वला अवस्था, रजोनिवृत्ति अवस्था इन सब में महिलाओं को आयर्न, कैल्शियम, प्रोटीन आदि से युक्त भोजन लेना जरूरी है। जिस तरह से उसे शारीरिक श्रम और मानसिक तनाव युक्त जीवन व्यतीत करना होता है, पोषण उसकी प्राथमिक जरूरत रहती है जो पूरी ना होने से उसे बीमारियों का सामना करना पड़ता है।
भागदौड़ भरी जिंदगी में महिलाओं को रिश्ते और जिम्मेदारियां निभाने में मानसिक थकान होने लगती है। मानसिक तनाव के कारण रोजाना कामकाज में भी तकलीफ देखने को मिलती है। यह समस्या बढ़ते बढ़ते कभी बड़ी बीमारियों का रूप धारण कर लेती है। जैसे कि नींद न आना, डिप्रेसन, सतत चिंताग्रस्त रहना आदि रूप ले लेती है जो महिलाओं को अशक्त बना देती है। शारीरिक स्वास्थ्य के साथ अपने मानसिक स्वास्थ्य का भी अवलोकन करते रहना चाहिए। रोजमर्रा के जीवन में उत्पन्न संघर्ष से लड़ने के लिए शरीर के साथ मन को भी मजबूत और स्वस्थ बनाना जरूरी होता है।
इसके उपाय क्या हो सकते हैं?
- Set ‘me’ time :
महिला को अपने लिए वक्त निकाल कर अपने स्वास्थ्य की ओर ध्यान देना चाहिऐ। महिलाओ को परिवार में सब का साथ लेकर अपने कार्यों को बाँट लेना चाहिऐ। अपने रोजमर्रा के कामकाज में कार्यों की प्राथमिकता तय कर समय बचाना चाहिऐ और बचे हुए समय में खुद के लिए कुछ प्रवृतियाँ करनी चाहिऐ। महिलाएं ज्यादातर समय मिलने पर मोबाइल फोन, सोशल मीडिया और टीवी देखने में समय का व्यय करती है। मानसिक स्वास्थ्य बनाए रखने के लिये योग, प्राणायाम, मेडिटेशन, म्यूजिक थेरापी, मंत्र चिकित्सा, आचार रसायन, जैसी आयुर्वेद में वर्णित चिकित्सा पद्धतिओं को अपनाना चाहिये।
- Develop Hobbies :
महिलाओं को अपने आप को खुश रखने के लिये कुछ रचनात्मक पवृतियाँ अपने दैनिक जीवन में शामिल करनी चाहिऐ। जो उसकी मनपसन्द क्रिया है वो दिन में एक घंटा करनी चाहिये। जैसे अच्छी किताबें पढ़ना, संगीत बजाना या सुनना, गार्डनिंग, आर्ट एण्ड क्राफ्ट, स्पोर्ट्स, dancing आदि…
- Eat healthy & stay healthy :
शारीरिक स्वास्थ्य को बनाए रखने के लिये आयुर्वेद संहिता में कहे गए आहारविधि के नियमों का पालन करना चाहिऐ।
- भोजन कैसा होना चाहिऐ?
– घी और तेल में पका हुआ स्निग्ध होना चाहिऐ।
– गरम होना चाहिऐ।
– ताजा बना हुआ होना चाहिऐ।
- भोजन कब करना चाहिऐ?
जब अच्छी भूख लगे तब भोजन के समय पर शांति से एक जगह पर बैठकर भोजन करना चाहिऐ। ज्यादातर महिलाओं की आदत होती है कि बार बार इधर उधर की चीज, बची हुई-बासी चीजे किसी भी समय मुँह में डाल लेती है। जब भोजन का समय होता है तब भोजन टालती है।
- भोजन कैसे करना चाहिऐ?
शांत मन से, आराम से बैठकर, ईश्वर को प्रार्थना कर के भोजन करना चाहिऐ, लेकिन अभी महिलाएं बाते करते हुए, टीवी देखते हुए, मोबाईल पर बाते करते हुए भोजन करती है जो गलत है।
- भोजन की मात्रा कितनी होनी चाहिऐ?
हमें जितनी भूख लगती है उससे थोड़ा कम खाना लेना चाहिए। ज्यादातर स्त्रियों की आदत होती है कि पकाया हुआ खाना थोड़ा बच जाता है तो वह जबरदस्ती खा लेती और सोचती हैं, कि डस्टबिन में फेंकने से अच्छा है पेट में ही डाल दें, ऐसा कभी नहीं करना चाहिए क्योंकि अगर पेट बिगड़ता है, तो उससे बहुत सारी बीमारियाँ होती हैं इसलिए हमें जितनी भूख लगती है उससे ज्यादा कभी खाना नहीं चाहिए। दिन में fruits और Dry Fruits अवश्य लेना चाहिऐ यथावश्यक दूध पीना चाहिऐ।
परिवार में अगर महिला स्वयं स्वस्थ रहेगी तभी तो पूरा परिवार भी स्वस्थ रह पाएगा, इसलिए परिवार के अन्य सदस्यों की भी यह जिम्मेदारी बनती है कि वे घर के कार्य में हाथ बटाऐ औंर महिलाओं को सहयोग दें, जिससे कि, पूरा परिवार खुशहाल जीवन बीता सके।
आज की नारी के लिये सन्देशः
- Stay with nature, Love nature, and Love yourself
- Always be happy, Believe in yourself
- You are the most important person in your family