”किसी भी षिषु के लिए मां के स्तन्य दुग्ध का
पान, अमृतपान के समान ही है। षिषु के लिए यह
स्तनपान स्वास्थ्य रक्षक एवं जीवन वर्धक है।“
‘‘मातुरेव पिबेत् स्तन्यम्‘‘
बालक के लिए मां का दूध ही सर्वोत्तम आहार होता है। मां द्वारा अपने शिशु को अपने स्तनों से आने वाला प्राकृतिक दूध पिलाने की क्रिया को स्तनपान कहते हैं। आयुर्वेद में मां के दूध को ‘‘स्तन्य‘‘ कहा गया है और यह मां का दूध पीने की प्रक्रिया को ‘‘स्तन्यपान‘‘ कहा गया है। स्तनपान शिशु के लिए संरक्षण और संवर्धन का काम करता है। नवजात शिशु में रोग प्रतिरोधात्मक शक्ति नहीं होती। स्तनपान करने से शिशु में वह रोग प्रतिरोधक शक्ति निर्मीत होती है।
बालक के जन्म के बाद पहले ३० – ४० मिनिटों में ही मां का दूध उसे पिलाना चाहिए। उस समय शिशु भी सहजता से मां का दूध पीना शुरू कर देता है। मां का पहला दूध बहुत ही गाढा होता है। यही दूध बच्चे के पेट में जाना जरूरी होता है। यह दूध पिलाने के बाद मां और बच्चे को दोनों को आगे चलकर कुछ तकलीफ नहीं होती। सामान्यतः पहली बार दूध पीने के बाद बच्चा जल्द ही शांति से सो जाता है। मां का दूध कम है ऐसा समझकर कुछ लोग बच्चे को बाहर का दूध पिलाना शुरू कर देते हैं, बोतल से या फिर चम्मच से। ऐसा करना बिल्कुल भी उचीत नहीं हैं क्योंकि ऐसा करने से बच्चे की आचुषण करने की नैसर्गिक क्षमता बंद हो जाती है, फिर वह मां का दूध पीना ही बंद कर देता है। फिर मां और बच्चे दोनों को आगे चलकर तकलीफ होती है। ‘‘स्तन्यपान‘‘ की शुरुवात बालक के जीवन में की बहुत ही ‘शुभ‘ घटना होती है। सुश्रुत संहिता नामक आयुर्वेदिक ग्रंथ में एक मंत्र कहां है वह पहली बार स्तन्यपान कराते वक्त मां ने बोलना चाहिए। वह संस्कृत मंत्र नहीं बोला तभी भी उस मंत्र के भाव मन में मां ने रखने चाहिए। वह मंत्र है
‘‘चत्वारः सागरास्तुभ्यं स्तनयोः क्षीरवाहिनः।
भवन्तु सुभगे नित्यं बालस्य बलवृद्धये ।।
पयोऽमृतरसं पीत्वा कुमारस्ते शुभानने।
दीर्घमायुरवाप्नोतु देवाः प्राश्यामृतं यथा।।’’
– (सुश्रुत शारीर स्थान)
इसका अर्थ है– हे माते, बालक की बाढ़ और विकास होने के लिए चारही समुद्र मिलकर तुम्हारे स्तनों में क्षीर ( दूध) उत्पन्न करे । हे शुभ मुख वाली माता, जिस प्रकार देवता अमृतपान करके दीर्घ आयु वाले हुए, उसी प्रकार अमृत स्वरूप ऐसे स्तन्य (मां का दूध) पीकर तुम्हारा बालक भी दिर्घायु वाला हो।
स्तनपान के उपयोग-
अमृत की उपमा दिया हुआ स्तन्य यह बालक का संपूर्ण अन्न है। ‘‘स्तन्य‘‘(मां का दूध) बालक के लिए आरोग्यदाई है । बालक के पोषण के लिए जो चाहिए वह सर्व घटक स्तन्य दुग्ध में होते हैं, तो स्तनपान से बालक की पुष्टि होती है, ताकत बढ़ती है।
मां जो कुछ पौष्टिक आहार, औषधियां खाती है, उसका सार रूप अंश ‘‘स्तन्य‘‘ द्वरा बालक को मिलता है। इससे बालक की रोग प्रतिरोधक शक्ति, उसका बौद्धिक, मानसिक और शारीरिक विकास सहज और उत्तम प्रकार से होता है।
मां के दूध के साथ ही उसका प्रेम बालक को मिलता है, इससे बालक को सुरक्षित लगता है और इस सुरक्षितता का उपयोग उसे पूरी उम्रभर होता है ।
स्तनपान कराने से मां की सेहत भी ठीक रहती है। संशोधको ने भी यह सिद्ध किया है कि शुरुआत से जिन बच्चों ने मां का दूध पिया है उनकी रोगप्रतिरोधक शक्ति उत्तम रहती है और शारीरिक पोषण भी ठीक से होता है।
स्तनपान कराते वक्त मां को लेने वाली सावधानीयां
जिन्हें पहली बार बच्चा होता है उन नए माताओं को और बच्चों को भी स्तनपान यह प्रक्रिया थोड़ी कठिन लगती है । लेकिन योग्य मात्रा में योग्य प्रकार से अगर स्तनपान देते हैं, तो दोनों को भी उसकी आदत हो जाती है। पहले दो-तीन दिन बालक को ज्यादा दूध की जरूरत नहीं होती, इन दिनों में मां का दूध भी गाढ़ा होता है। जैसे दिन चले जाते हैं वैसे माता के स्तनों में दूध की उत्पत्ति ज्यादा प्रमाण में होने लगती है। बहुत बार शुरुआत के दिनों में कई बच्चे इतनी ज्यादा मात्रा में दूध पी नहीं सकते, तो यह जो ज्यादा दूध तैयार हुआ होता है स्तनों में स्त्री के वह बाहर निकालना चाहिए। अगर वैसे ही स्तनों में वह रह गया तो स्तनों में सूजन आ सकती है और स्तन दुखने लगते हैं। वह ज्यादा का दूध हल्के हाथ से दबा कर बाहर निकालना चाहिए । अन्यथा दूध की गुठलीयां बनके स्तन के सिराओं में अवरोध निर्माण कर सकती हैं। इससे आगे चलकर दूध बाहर निकलना भी बंद हो सकता है। माता का दूध निकालने के लिए जरूरत पड़े तो ब्रेस्ट पंप भी इस्तेमाल कर सकते हैं।
स्तनपान कैसे करें?
स्तनपान हमेशा साफ और शांत जगह पर करावाना चाहिए। स्तनपान करवाते वक्त माता ने आराम से मुलायम आसन पर बैठना चाहिए। दूध पिलाते वक्त बच्चे को इस प्रकार लेना चाहिए जैसे कि उसका सिर मां के पेट से थोड़े से ऊपर रहे । अन्यथा स्थानों का दबाव बालक के मुंह और नाक पर आ सकता है, और दुपट्टा या साड़ी के पल्लू से उसे पूरी तरह से कभी भी ना ढकें। ऐसा करने से बच्चे को श्वसन करने में तकलीफ हो जाती हैं।
बालक को स्तनपान कराने से पहले माता ने अपने स्तनाग्रों (निप्पल्स) को स्वच्छ करना चाहिए। स्तनाग्र (निप्पल्स) साफ करने के लिए एक पतीले में पानी उबाल के रखना चाहिए और बालक को भूख लगे तब एक निर्जांतुक किया हुआ कपास का छोटा गोला (कॉटन बॉल) लेकर उसे पानी में डूबा कर स्तनाग्र मतलब निपल्स को पोंछ लेना चाहिए और हर बार नया कॉटन बॉल/कॉटन स्वाब इस्तेमाल करना चाहिए।
स्तनपान कितनी देर कराना चाहिए?
शुरुआत में बालक को 5 मिनट दाएं और 5 मिनट बाऐं तरफ स्तनपान कराएं। धीरे-धीरे यह समय बढ़ाते जाए 10 या 15 मिनट तक स्तनपान दे सकते हैं। कितने समय दूध पिलाना चाहिए यह निश्चित रूप से हम कह नहीं सकते क्योंकि बालक के भूख, उसकी उम्र और दूध पीने की क्षमता इन सब के हिसाब से यह समय बदल सकता है। बहुत बार पेट भरने के बाद बालक अपने आप की दूध पीना बंद कर देता है । एक बार बालक 15 से 20 मिनट स्तनपान करता है। 9 महीने पूरे होने से पहले जो जन्म हुये बालक होते हैं, जो अशक्त होते हैं उनका स्तनपान करने का समय ज्यादा हो सकता है। जैसे कि 25-30 मिनट, कुछ दिनों के अनुभव के बाद मां को समझ में आने लगता है कि बालक का पेट भरा है या नहीं । स्तनपान कराते वक्त मां का पूरा ध्यान बालक की ओर रहना चाहिए। कभी-कभी बालक को अपने पास, अपनी बगल में लेने से भी दुध का स्त्राव होने लगता है। बहुत प्रमाण में अगर दुध आने लगे तो बच्चे को पीने में भी दिक्कत हो सकती है। इस समय मां ने निपल्स के ऊपर और नीचे अपने हाथ के दोनों उंगलियां रखकर थोड़ा हल्का सा दबाव देकर स्तनों के प्रवाह को नियंत्रित करके दूध पिलाना चाहिये। स्तनपान पुरा होने के बाद फिर से निप्पल्स कॉटन स्वाब से पोछ कर रखनी चाहिए। दिन में एक दो बार उसके ऊपर देसी गाय का घी लगाते रहना चाहिए। इससे निप्पलस रुक्ष नहीं होते और उन में स्निग्धता बढ़ती है। हर बार दूध पिलाने का स्तनों का क्रम भी बदलना चाहिए मतलब एक बार दाईं तरफ पिलाए और दूसरी बार बाई तरफ पिलाये। ऐसा करने से दोनों ही स्तनो में समान स्तन्य निर्मिती प्रक्रिया होती है । स्तनपान कराने के बाद बालक के पेट के ऊपर ज्यादा दबाव ना डालें। बालक को उठा के अपने कन्धोन पे उसका सिर रखें और हल्के हाथ से पीठ के ऊपर थपथपाई। उसे डकार आती है क्या देखें। ऐसा करने से बालकों को उल्टी भी नहीं होती और पिया हुआ दूध पाचन हो जाता है।
बहुत बार बच्चों को दूध पीने के बाद उल्टी होती है। बहुत सारी माताएँ इसका टेंशन लेती हैं। लेकिन हमें ध्यान में रखना चाहिए बच्चे का वजन कम होना, उसकी नींद पूरी ना होना, उसका बार-बार रोना ऐसी कुछ तकलीफें उसे अगर नहीं हो रही होगी, तो उसकी उल्टी के बारे में ज्यादा ध्यान ना देना ही बेहतर है। शरीरमें बढा हुआ कफ कभी कभी बच्बों के मुंह से उल्टी के जरिए बाहर निकलता है। इस प्रकार की उल्टियां, बच्चें जब रेंगना शुरु करते है तब अपने आप धीरे धीरे बंद हो जाती हैं।